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यशोधर रास
कोइल करई रहकडा ए मधुकर झंकार । फली जातज वृक्ष तणीये बनह मझार । बनदेषी मुनिराउ भणि इहो नही मुझ काज । ब्रह्मचार यतिबर रहितु प्रावि लाज ॥२०॥ इम जाती मुनिराउ सही समसान पहूत । मुनिवर पाणी तास तरिण से मछइ बहुत । ठामिठामि सब तरणीय गघि अनि अस्थि प्रसंष । काक सेह सीयाल स्वान तिहां प्रावि पंष ।।२।। फासूय भूमि वलोक करी मुनिराउ बइठउ । वैराग्म सरीतु ठाम देषि मनमाहि संतुट्ठ। चैत्र मास सुदि प्रायमि' सइलइ उपवास । ब्रह्मचार मनिषुडीय एक प्राध्यां गुरु पास ॥२२॥ गुरु प्रणमी कर जोष्टि दोइ मागि ने प्रौषध । संसार दुख निवारवाए ए अनइ प्रौषध ॥ मुनिवर बोलि सुगउ वत्स तम्हे अच्छउ बाला । नयर मझि प्राहार लिउ बली पहुचु पालां ॥२३॥
॥ वस्तु ।। ताम पलिकलिक सुरणीय गुरुवाणि । प्रगमीय तब बेह चालीयां लपवंत पुण मछियाला । लखण सवह विभूषीयां हंस गमण करि जाह पाला। तब ते तलवर मूलग मारगि मलीज जाम । देषी दोइ मन बीतवि सरीयां सवि मुझ काम ।।
प्रथ ढाल बीजी क्षुल्लिका युगल का माना: (२) बुल्लिक युगलं दीठउं जाम । तलवर मनमाहि हरष्या ताम ||
देवी पूजा होइसि ए। इम बोली पालि फरिवरीया तलवर सवि भूमि परिवरीया ।
ब्रह्म ते पूडी प्रतिभरिगए ॥२४॥ मम कपि सतु बहिन लगार, अथिर प्रसार प्राइ संसार मरण, तणु अह्म भय
किस ए ॥२५॥ बहिन हसी भाई प्रति बोलि । हसे वयणे मन किमहिन डोलि । जउ जिनवर हीयरि बसिए ॥२६॥