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प्राचायं सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर विद्या गयणह गामनी ए ती मुझनि आपु । देई हाथ मो मस्तक चेलु करी थापु । जोगीय बोलि राङ निसुस्णि चंडमारी देवी ।
हाल धा जीम कोली : ३!! देवी के सामने बलिदान के लिए जीवों का लाना
जलचर खेचर भूमिचर जे जीव कहीजि । संह तणां ज युगल मलिते ते प्राणीजइ । कोटवाल तेडीउ राइ प्रादेश ज दीध । ग्राणु अति वणा जीवरासि प्रणाम ज कीधु ।।१४।। गउ कोटवाल देण माहि बह जीव प्रणादि । प्रति घणा जुगलज प्रावीयां ए कोइ नाम न जागि वि। हरिगा रोझ गज प्रश्व छाग महिषी वृष मेष । बक सारस अनइ चक्रवाक जे जीव असंख ॥१५॥ देवी मठ सह पूरीउ ए तेहे जीवे प्राणी । राजा बेगि पधारोउ ए तेहे प्राच्या जागी । जोगीय आव्या ताम सवे बिठा निज पासण । राजा देबी पाय पडी ए बली साह्मि सिंघासमा ।।१६।। बिसी मंत्री प्रति भणि तुह्म राउल पूछ । कांद न हगीना जीव अजी किंपिअछि उछ । पूछयाउ जोगी कहिय ताम संभलि तु भूष।। सत्तीस लक्षण नरह युगमये हुइ मला ।।१७।। ते आणी प्रापणि हाथ तई हंस करे । पूजीय देवि संतोष करी सहू विधन हरेवु । विद्या गयगाह गामनीए तुझ ततक्षा तूसि । इम कीधा पाषिकहूं मुझ देवी रूसि । सुणीय बात तिहां भूमिपाल, तलवर हकार । बत्तीस लक्षण नरह युगम पारणेला इस बार ।।१।। प्रापरिण तलवर वालीउ ए नप करीय प्रणाम ।
सेवक सवे तिरिण दहदिशि ए पाठवाया ताम । संघ सहित सुबत्त मुनि का प्रागमन :
तिरिण दिनि मुनिवर संघ सहित सुदत्तह नाम । प्रावी पुहुनु वनह मझि दिन चडित याम ॥१६॥