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यशोधर रास
चैत्र वसंतज प्रावीए वनसपती फूली ।
कामिनि काम विधाकुलीए पति देवीय भूली ॥६॥ भैरव जोगी का प्रागमन :
तिणि अवसा जोगीय एक तिहाँ आवि पहत । चेसा ही भगति पर अनि सानाः परः। सेरी सेरीय भमइ सह प्रनि चरीया गांई । मूरष लोकां भोलवि वली सीगी वाइ ।।७।। लोकह प्रागिन ते कहि ब्रह्म वरस बहूत । दीठउ राम ज लक्षमण अनि अंजनि पूत । ब्रह्मा विष्णु महेस सवे पांडव ब्रह्म दीठा । रोगि प्रसीया राय जिके मुझ सरण पईठा ॥८ सेव कराउ संभालीउ ए स्वामी सुरिण बात ।
भैरव राजस मादी ए चेला सह मात । राजसभा में जोगी का श्रागमन :
जोगीराइ नेडाबीउ ए ने पाज्यू साम । उठी भूपति मानी ए वली करीय प्रगाम ॥६॥ प्रासीस देईय भुप सहित निज बिठा ग्रापरिण । दात पूछेवा राउ ताम यली करइ निमासिरिण । जोगीय बोलि राज निसुगिहूँ प्रत्यक्ष देत्र ।
आपु संगा राज रिद्धि बे करि मुझ सेव ॥१७॥ सुसुतु हर राज वली करउं जगहिलु । जिरिए काजि तेडीइएने कहि मुझ विहित । कामरण मोरण वसीयकरण थंभरा पा जाणु। विद्या गयगाह गामिनी ए वली मंथ दपाणु ।।११॥
सह रसायण मंत तंत ते सषला घूझ । मद्य मांस अनि छोति धौति ते किमिहि न सूझंऊ । राजा मन माहि हरषीउ ए ओगी प्रति बोलि । को न दीठउ सृष्टमाहि जोमी तुझ तोलि ।।१२।।
१. जोगी का नाम