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________________ आचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर वेदी अतिहि बिसाल, सिंघासन हीरे जड्थे । ते पुण अतिहि विसाल, छत्रत्रण सिर झगमगियां ॥११॥ चुसठि चमर वीजंत, सुरनर गण गंध्रव मिलीया। जन्म सफल कीजंति, नाटक नाचि देवीयां ए॥१२॥ तुबर गेह करंति, वापी वन प्रति षातिका ए। पोल प्रवेस राजति, रासी गणधर हया ए ॥१३॥ वाणीय सप्तविभंग, दिन दिन उच्छव इम हुइये । पुजीय मन तणि रंगि, भावना भाविसु पापणीयां ॥१४।। सृण स्वामी मुझ कात, दुःख निवारण तु धणीया । तु माता तु तात, तु बांधव तु जगह सुरो ॥१५॥ भनि मषि भम्यु अपार, जन्म जरा मरणादिषय । सहियां दुःख सविधार, इन्द्री पांचे निरजण्यु । ।।१।। मनह सणिरे विनाण, मयण पापी घणुरो सब्यु ए । मोह माया नि मान, गर्भवास दुख बहु सह्या ए ।।१७।। भावर असह मझारि, नरफ सात निगोदीयां ए। मानव देव संसार, पंचमिथ्याति बाहीउ ए॥१८॥ कुगुरु फुदेव अनंत, प्रवरदेव सवे जोयतां ए। मितु दो माहंत, तिरिण कारणि तुझ पय कमलो ॥१६॥ सरण पयरउ हेव, राधि क्रिया करे माहरोये । राव करूं किकेवि, नब निधि जस परि संपजिए ।। २७॥ महनिशि जपतो नाम, भादि तीर्थकर मादि गुरु । मादिनाथ प्रादिदेव, श्री सोमकीर्ति मुनियर भरिणए । भवि भवि तुझ पाय सेव, चरण कमल वंदन करू ।।२१।। इति श्री प्रादिनाथ वीनती समाप्तः मल्लि जिनगीत प्रस्तुत गीत में तीर्थंकर मस्लिनाथ का स्तवनात्मक वर्णन किया गया है। यह एक लघु, गीत है। इसलिये उसे अविकल रूप से पाठकों के पठनार्थ यहाँ दिया जा रहा है
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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