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प्राचार्य सोमकीर्ति
आदिनाथ गीत
गागर में सागर भरने के समान प्रस्तुत गीत में भादिनाथ स्वामी के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। इस प्रकार के गीत लिखने में जैन कवि बड़े चतुर थे। छोटे-छोटे गीतों के माध्यम से वे विविध विषयों पर अपनी काव्य शक्ति का प्रदर्शन करते थे । प्राचार्य सोमकीति भी इस प्रकार के गीत लिखने में सिद्धकवि थे । प्रस्तुत गीत भी इस प्रकारका एक गीत है। इसमें २१ पच है । गीत निम्न प्रकार है
भाविनाथ विनती
नाभि नरिद मल्हार, मुरा देवी राणी उर रयण ॥ त्रिभुवन तारणहार, हेलां जिणि जीत
मयण || १ ||
नयर मजोव्यां बास, कुल
सुर नर सेवि तास, व
इष्वाकर मंडणू ए 1 सुवह जास सबै || २ || पंचसह धनु देह रूप रंग रस रूयड्डु ए । गुग्रह न साभि सेह, लक्ष चुरासी भायु कही ॥ ३ ॥
पूरब तेह विचारि, सतिर लक्षह कोडि तिहा
छपन सहस मकारि, इसी परि बरसासु एक
उ ॥४॥
ए ।
पराइ ॥ ५॥
पूरव तेह ज भेउ, जे मिथ्याति किम करी जाणि तेह, बीस लक्ष त्रिसिठ राज अभ्यास, एक पूरव चारित्र धरीब । भवयां पूरीय श्रास, मपरा देषि वैराग भउ || ६ || छोड़ीय तब निज राज, ब्यार सहस्र नरपति समुप | की तब निज काज, वरस दिवस पारणु मंउए ||७|| घरि श्रेयांसह जार ईक्षु रसि माहार लीउ । अंजलि मठ प्रमाण, सहस्र वरस गयां उपनुए १८ निरमल केवलज्ञान, प्रातिहार्य माठि हुया ए । अंनत चतुष्टय स्यार, प्रतिसितीस विराजनू ए ।। ६ ।। चिहू भागलि सविवार, समोसरण स्वामी ताडं । दीसि जोयण बार, वीस सहस्र पग पारीयां ए ॥१०॥
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बाहीया
बाला