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प्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर
रामा राणिम समि सुख सहए,
श्री सोमकीरति कहि दिउ हए । धूल श्री ऋषभनु गाइसिग,
तहां चितत फल सह पाइसिए । (४) श्रेपन क्रिया गीत इस लघु
ग मावकों द्वारा मेरन या कराने पर विशापा है। इन क्रियानों के पालन करने से मनुष्य का जीवन सात्विक बनता है तथा उसे स्वर्ग एवं मुक्ति की प्राप्ति होती है। पूरे गीत में ६ अन्तरे हैं तथा गीत के अन्त में कवि ने अपने नाम का भी उल्लेख किया है। पूरा गीत निम्न प्रकार है
ओपन क्रिया गीत सरसित स्वामिणि मह निशि समरी जिण बुवीस नमी जि । सहि गुरु पलण कमल प्रणमीनि किरीया विपन लीजि ।। सहिए त्रिपन किरिया पालु पाप मिथ्यातज टालु । साचु समकित हुक्ष्य धरोनि श्राविकुल अजूयालु सही ॥१५॥ रूषु समकित ते एफ कीजि तेस उपमा पुरण दीजि । ईग्यार प्रतिमा निरमल भणीइ, ते साचि चित कीजि | सही।।२।। दर्शन ज्ञान चारित्रि बाहु, मुगती जु उमाह । रत्नत्रय मंडार करीति निज मन निश्चल साहु ।।सही।।३।। पाठ मूलगुण मिश्चल जाणु व्रत वारि बखाण्उ । बापाभितर तपबिहु भेदे, सुकृते मनि पाणु सही॥४॥ म्यार दान बिहु पात्रा सारु अल गालण तिषि वार । एक प्रणयमी प्रति घणु सूधी, तु तिरसु संसार 1|सही॥५॥ सोमीति गुरु केरी वाणी, भवकि जीव मनि माणी । त्रिपन किरिया जे नर गाइ, ते स्वर्ग मुगति पंथ पाई।सही।।६।।
गुटका पत्र संख्या १३७