SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य सोमकीति उस समय १५ वीं शताब्दी में इस प्रकार की रचना स्वयं में ही महत्त्वपूर्ण है । १५ वीं शताब्दी में निबद्ध राजस्थानी गद्य-पद्य का नमूना अच्छी तरह से देखा जा सकता है। पूरा छन्द १०४ पद्यों में पूर्ण होता है इसके अतिरिक्त बोली वाला भाग प्रलय है । हा बंध, दूहा पाथी श्रर्थं त्रोटक छन्द हवि दूहा, छन्द त्रिवलय, आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है । कवि को दूहा छन्द प्रिय था इसलिए उसने दूहा बंध, दूहा, हवि दूहा के नाम से प्रयोग किया है। इसी तरह बोली हवि बोली इन दो नामों से राजस्थानी गद्य का प्रयोग अपने श्राप में ही उज्जवल पक्ष है । (३) रिषभनाथ की धूल यह एक लघु काव्य कृति है जिसमें भगवान आदिनाथ के पांचों कल्याणकों का वर्णन किया गया है। इसमें चार ढाल हैं। यद्यपि कवि ने इस लघु कृति की रचना आदिनाथ की जीवन गाथा बन करने से उद्देश्य से की थी लेकिन कहींकहीं प्रणते काम पर में नाभि राजा की है। रानी मरुदेवी को परिचर्या में देवियां किस प्रकार सभी हुई थी इसका एक वर्णन देखिये केवि सिर छत्र परति करति केजि धूपनाए केविड गह बेक अंगि, सुवंगरे पूजा घणी ए ॥ केवि सपन अनि श्रासन, भोजन विधि करिए । केवि खडगधरी हाथि सो, साथइ नितु फिरिए 11 २७ तीर्थंकर ऋषभ को पाण्डुक शिला पर स्नान कराने के पश्चात् इन्द्राणी बड़े भाव से उनका श्रृंगार करती है। उन्हें सोलह प्रकार के आभूषण पहनाती है । इन्द्र स्वयं तीर्थंकर के अंगूठे में अमृत ढाल देता है। खूब उत्सव होते हैं तथा देव एवं देवियां तथा अयोध्या के नर नारी खुशी से नाच उठते हैं । इन्द्र इंद्राणीय करि अभिषेक, आप आपणि रंगि रचियां विवेक । स्नान कराविय सोल विभूषण, भूषया ते जिनवर सहि जुसुलक्षण । अंगूठि प्रभूतदेह ज्ञातीय धर्मववन नवि ले || इम्प्र कवि ने रचना के अन्त में अपने नाम का उल्लेख किया है लेकिन कृति का रचना काल नहीं दिया है
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy