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आचार्य सोमकीर्ति मल्लिजिन गीत .
स्वामीय श्रीय मल्लि जिवर देव तोरा गुण गाउँ तोरा नित नित पायवी सेव पति घणु माउ ॥वडा ध्याउं प्रति घणु सहा पाये सेवा चिहुं गति माहि भमीउ । कुगुरु कुदेव पासाइ रुलीउ जुजिण घर मन रमीउ राग देष मनमयमय भोल्यु बुषि करीय मणु लामी । जोतां जीता मित्तु लाघु मल्लिनाथ जिन स्वामी ॥१५॥ चुरासीय सक्ष जीवा योनि भमी ममी भाग वली पुण्यतणि परिमाण ठाकुर तह पीये लागु ।। तहा पाइ कमले लागु प्रबरन मांगु भावर तम्ह पाई सबै लड्डे तोरा गुण अछि मनता एक जीव करि केम कहु । थावर सह नगोदि भीउ गति सबलीयमि वासी ॥२।। पंच महादत पंच सुमति मति गुपति न पाल्यां चारित्र दूषण जे ते स्वामी न टाल्पा ।। नवि टाल्यो दूषण करम मूसाइ मूढ परिण प्रति भोल्यू इंद्री मनह विकारि घमीर मोहि पति अस्खाल्यु समकित रयण चारित्र नवि प्राण्यां धुरि न सूघु संघ । महि गुरु पाय कमल घणु सेच्या पाल्या महाव्रत पंच ॥३।। देव दया करु स्वामी संभाल सेकनीय कीजि । जिम जिणवर वीय वाणि सांभलि मोसमन भीजि 11 मौरू मन भीजि ते परि की जितु गिरि पुरवा राज । वैराग्य रंग रसि घणु रातु पवर नहीं मुझ काज । पाठ मद ते मनि पा छांडी वीनवु छु हेप । श्री सोमकीरति गुरु इणी परि बोलि भवि भवितु मुझ देव ।।४।।
गुटका पत्र संख्या ५४-५५