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________________ प्राचार्य सोमकोति तथा मन्दिर बनवा कर उसमें भगवान की प्रतीमा की प्रतिष्ठित करने की बात रखी। मुनि ने उत्तर वाइपुर जाने को कहा तथा अपनी तपस्मा के प्रभाव से नरसिंहपुरा एवं उत्तर वाडुपुर के निवासियों को सम्बोधित किया और जैन धर्म में दीक्षित कर नरसिंहपुरा जाति की स्थापना की तथा उसे २७ गोषों में विभक्त किया राममेन वहां से चित्तौड़ आये। रामसेन के साथ उनके शिष्य भेमिसेन मुनि भी थे । जो प्रायश्चिद् स्वरूप छह महिने का उपवास कर रहे थे। रामसेन ने अनशन करने की बात छोड़ने के लिये कहा । गुरु की बात को ध्यान में रख कर वहां से वे जाउर नामक प्रसिद्ध स्थान पर प्रा गये तथा अन्न, जल त्याग करके ध्यानस्थ हो गये । इस प्रकार सात दिन व्यतीत हो गये । एक दिन मुनि नेमसेन के ऊपर से पधावती देवी निकल' गरी। उधर से कैलाश से सरस्वती देवी भी सामने अाती हुई मिल गयी। दोनों में भेंट हुई तथा बातचीत हुई । नेमिसेन मुनि अपनी काया को क्यों कष्ट दे रहा है । यह कह कर दोनों देत्रियां मुनि के सामने जाकर खड़ी हो गयी। मुनिवर ने दोनों को देखकर कहा कि वे क्यों कष्ट कर रही है इस पर दोनों देवियां उससे प्रसन्न हुई । सरस्वती की प्रसन्नता के कारण उसे शास्त्रों का अपार ज्ञान प्राप्त हुआ तथा पयादेवी के कारण, प्रकाश गामिनी विद्या प्राप्त हुई। प्रातःकाल नेमसन ने अनशन तोड़ दिया । मुनि ने उसके पश्चात् प्रतिदिन शत्रुजय, रैवताचल, तु'गेश्वर, पावागिरी, एवं तारंगा क्षेत्र की यात्रा करने के पश्चात् हो माहार ग्रहण करने का नियम ले लिया । नेमसेन वहां से चित्तौड़ पाये । वहां नाकर अपने गुरु की वन्दना की। गुरु ने प्राशीष देते हुये कहा कि मेवाड देश में भट्टपुरा नगर है वहाँ के लोगों में मिथ्यात्व फैला हुआ है तथा वे धर्म के मर्म को नहीं समझते 1 तुम विशेर ज्ञान के घारक हो इसनिये यहां जाना चाहिये । नेमसेन ने गुरु की प्राज्ञा शिरोधार्य की । चित्त में उस कार्य का चिन्तन किया तथा शीघ्न ही भद्रपुर नगर में पहुंच गये । वे नगर में गये और लोगों में फैले हुए मिथ्यानन्द को देखा तब उसे नष्ट करने का संकल्प किया। यहां के नागरिकों को अपने ज्ञान से सम्बोधित किया। एक भटपुरा जाति की स्थापना की । भट्टपुरा में चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को भ० नेमसेन ने प्रतिष्ठापित किया। नेममन भट्टपुरा से चल कर अपने गुरु के पास प्राथे । भक्ति पूर्वक वन्दना को । तथा भटपुरा के सम्बन्ध में पूरा विवरग सुनाया। इसके पश्चात् सोमकीति नेमसेन के पट्ट में भट्टारकों के नामोल्लेख करते हैं जो निम्न प्रकार हैं
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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