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आचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर
अवश्य किया था । इसी हिंसा के कितने परिणाम अनेक जन्मों तक मुगलने पड़ते है यही यशोधर रास के कथानक की मूल बस्तु है । २. गुरु नामावली
___ सीमकीर्ति की यह दूसरी रचना है जिनमें उसने अपने संघ की पट्टावली नामोल्लेख किया है तथा उसका ऐतिहासिक परिचय दिया है । काष्ठा संघ की उत्पत्ति एवं उसमें होने वाले अपने पूर्व भट्टारकों के नाम, किमी किसी भट्टारक की विशेषता साथ ही में नरसिंहपुरा जाति एवं भट्टपुरा जाति की उत्पत्ति का वर्णन भी दिया गया है | गुरु नामावली की पूरा विवरण निम्न प्रकार है ---
संस्कृत में मंगलाचरण के पश्चात् सोमकीति अपनी शक्ति अर्थात ज्ञान के अनुसार अपने गुरुयों की नामावली कहने की इच्छा प्रकट करते हैं।
___ भगवान मादिनाथ के ८४ गणधर हुए और महावीर स्वामी के ग्यारह । भरतेश्वर जिन प्रकार चक्रवतियों के शिरोमणि थे उसी प्रकार काष्ठासंघ अन्य सभी संघों में शिरोमणि था। लाड बागा गच्छों में नन्दी तट संजन संघ प्रसिद्ध है। अहंदवल्लभसूरि उस गच्छ के प्रथम प्राचार्य थे । उस गच्छ में पांच गुरु हुये । वे हैं गंगसन, नागसेन, सिद्धान्तदेव, गोपसेच, नोपसेन ।
दक्षिण देश में गन्धी तटपुर में नोपमेन मुनि रहते थे। उनके पांचसो शिष्य थे उनमें चार शिष्य प्रमुख थे । रामसेन प्रथम णिस्य थे जो वाद एवं शास्त्रार्थ करने में पटु थे । अपने शिष्य की विद्वत्ता एवं शास्त्रार्थ पटुता वो देवकर नौपसेन ने कहा कि यदि वह नरसिंहपुरा जाकर वहां के निवासियों में व्याप्त मिथ्यात्व को दूर कर सके लब उसकी शास्त्रार्थ पटुता को समझी जावेगी । नागड देश में मथुरा नगरी में तथा लाइ देश में मिथ्यात्व' फैला हुमा है । गुरु की वाशी को मन में धारण कर वहां से वे चारों शिष्य ले ।।
मूनि रामसेन नरसिंहपुरा नगर में भाये । नगर के बाहर मरोघर के किनारे मासोपवासी बन कर ध्यान करने लगे । उसी नगर में भाहड नामक श्रीमन्त था जिसके सात पुत्र थे लेकिन पौत्र एक भी नहीं था। सेठ मुनि की वन्दना करने वहां माया पीर हाथ जोड़कर बैठ गया । तथा महामुनि के आदेश की प्रतीक्षा करने लगा। मुनि ने मिथ्यात्व दूर करके जिनधर्म फैलाने की इच्छा प्रकट की
१, रामसेन के अतिरिक्त तीन शिष्यों का नाम नहीं दिये गये हैं।