SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचार्य सोमकोति १६ देवीय मंडप विषभु वोठउ, सूग तरण भय मन माहि पिठड ठामि ठामि बीहामरगए ।। ३६ ।। अस्थि तगा को ही अगर बीसि अस्थि सिंघागि जोगी महसि अस्थि दंड ते कर लेइए ।। ३२ ।। अमिष तणा ढगला प्रति पुरण । अमिष ठाम टोसिधिप्रति घण ! अमिष मषी पंखी चखिए । ३३ ।। लेकिन जब प्राकृतिक छटा का वर्णन करने लगता है तो कवि उसमें भी जीवन डाल देता है -.. मोहल करह टहक भमरा रुप मुरण इवनि करि रे सखी फल्या केसु फूल. सहकारे मांजिर घरगी रे ।। इसी तरह उसने झुल्लिक झुल्लिका के सन्दौर्य का वर्णन किया है कद इन्द्र इन्द्राणी बेहू । पस कीरति धरि आदि देह । चण्दा रोहिणी सु मिलिए ।। ४३ ।। सुरचरना देव सरीसु मारणस । रूपन ए ईभु। कामि सहित सुरति हुइए ॥ ४४ ।। मामाजिक स्थिति में कवि ने तत्कालीन विवाह विधि का विस्तृत वर्णन किया है कुमार यशोधर के विवाह का प्रस्ताव लेकर ऋथकैशक राजा के यहां से दूत छाता है । दूत का प्रस्ताव सुनकर राजा उससे उम्जयिनी पाकर ही विवाह करने का प्रस्ताव रखता है। दूत राजा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है। तथा राजा, राजपरिवार एवं कन्या सहित वन में प्राकर ठहर जाते हैं। १. हाल पाठमी ।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy