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प्राचार्ग सोमकीर्ति एवं ब्रह्म पशोधर
बार के वनों, ना वो, म गर शिरः प्रकाश डाला और उन्हें जीवन में उतारने पर जोर दिया । राजा मारिदप्त मशोघर के पूर्व भवों की कथा को मुनकर जगत से भवभीन हो गया और क्षुब्लक क्षुल्लिका के पांव पर गया ! उधर सुदत्ताचार्य भी वहां पा गये। अभवरुचि ने उनसे राजा को दीक्षा देने के लिये निवेदन किया। मारिदल ने मुनि दीक्षा लेकर स्वर्ग प्राप्त किया । योगी ने भी हिसावृत्ति को छोड़ कर जिनदीक्षा धारमा कर ली। देवी के मन्दिर को स्वच्छ कर दिया गया और जीव हिंसा सदा के लिये बन्द हो गयी। अभयरुचि एवं अभयमति तपस्या करते हुए मर कर स्वर्ग में इन्द्र प्रतीत हुए । बाजारा कल्याण ने भी जिन दीक्षा धारण कर स्वर्ग प्राप्त किया। इस प्रकार प्रशोधर रास में सूक्ष्म हिंसा से भी कितने भवों तक कष्ट सहने पड़ते हैं, इसका विस्तृत वर्णन क्रिया है । इस रास काव्य को जी पढ़ता है अथवा सुनता है उसे अपूर्व पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार का यशोधर रास के कथानक को कवि ने बहुत ही मीधी सादी एवं तत्कालीन बोलचाल की भाषा में निबद्ध किया है। कवि ने काव्य के मूल कथानक में यद्यपि कोई परिवर्तन नहीं किया है किन्तु अपने काव्य को लोकप्रिय बनाने के लिये उसके वर्णन में नवीनता लाने का अवश्य प्रयास किया है । उसमें सामाजिक पुट स्थान स्थान पर मिलता है तथा तत्कालीन जन भावनाओं की अभिव्यक्ति भी मिलती हैं । प्रकृति वर्णन, नगर वर्णन, शासन वर्णन आदि भी स्थान स्थान पर मिलते हैं । उस समय की अध्ययन अध्यापन स्थिति का भी काव्य से पता लगाया जा सकता है साथ ही में राजा एवं प्रजा के सम्बन्धों पर भी कहीं कहीं प्रकाश डाला गया है । काव्य के अन्त में हिंसा से मुक्ति पाने के लिये उसके अवगुणों का विस्तृत वर्णन मिलता है तथा जीवों की स्थिति, उत्पत्ति, एवं विविध योनियों का अच्छा वर्णन किया गया है।
कवि ने फ्मशान एवं देवी मंडप की विभित्सता का बहुत अचहा बार्णन किया है जिसे पढ़ते ही मन में ग्लानि होने लगती हैं। राजपुर के श्मशान का चित्र प्रस्तुत करते हुए कवि ने लिखा है
हामि ठाभि सब तसीय गंधि प्रति प्रस्थि असंख । काफ सेह सोयाल स्वान सिंहा प्रावि पंख ।। २६ ।।
इसी तरह देवी के मठ का वर्णन देखिये