________________
आचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर
संवत् १५३६ में संस्कृत में यशोधर परित्र की रचना की थी इसलिये यह सम्भव है कि इस काव्य की रचना भी संबत् १५३६ के प्रासपास ही हुई होगी।
१. यशोधर रात
राजा यशोधर का जीवन जैन साहित्यकारों के लिए अत्यधिक रुचिकर रहा है। प्राकृत संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी एवं हिन्दी सभी भाषा के कवियों ने यशोधर के जीवन पर 'खूब लिखा है । महाकाव्य, चम्काम्य, खण्ड़ काध्य, रास काव्य, चौपईबन्ध काव्य, बेलि, फागु एवं चरित नामान्तक सभी तरह के काव्य मिलते हैं । यशोधर के जीवन ने श्रावक समाज को इतना अधिक प्रभावित किया कि जब तक कोई कवि यशोधर के जीवन पर कलम नहीं चला ले तब तक उसे कवियों की कोटि में स्थान मिलना कठिन है । यही कारण है कि अपभ्रश के महाकवि पुष्पदन्त ने भी असहररिउ छन्दोबद्ध किया तथा प्राचार्य सोमदेव ने संस्कृत में यशस्तिलक चम्यू लिखकर बिद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया। हिन्दी, राजस्थानी में तो बीसों यशोधर बरित लिखे गये हैं जिनमें ब्रह्म जिनदास का यशोधर रास विशेषत: उल्लेखनीय है। प्राचार्य सोमकीर्ति तो यशोधर के जीवन वृत्त से इतना अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने पहले संस्कृत में यशोघर चरित्र एवं फिर राजस्थानी में मशोधर रास की रचना करके जैन कवियों के समक्ष एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया ।
रचना काल एवं स्थान
राजस्थानी भाषा में इस रास काव्य को प्राचार्य मोमकीति ने गुढली नगर में शीतलनाथ स्वामी के मन्दिर में कार्तिक बुदी प्रतिपदा बुधवार के शुभ दिन समाप्त करके जन-जन के समक्ष स्वाध्याय के लिए प्रस्तुत किया। कवि ने रास काश्म के समाप्ति काल का महिना, वार एवं स्थान तो दिया है लेकिन संवत् का उल्लेख नहीं किया। कवि ने संस्कृत के यशोधर चरित्र की रचना संवत् १५३६ पौष बुद्धि पंचमी रविवार को समाप्त की थी। रचना स्थान दोनो का समान है अर्थात् संस्कृत काव्य को भी गुली नगर एवं शीतल नाम स्वामी के मन्दिर में ही लिखा गया था । संस्कृत भाषा में कवि ने काव्य की रचना को अधिक प्राथमिकता
१. कातीए उजली पावि पष्टिया बुधवार कीउ ए ।
सीतलूए नाथ प्रासादि गुढली नगर सोहामणुए। रिधि वृद्धिए श्री पास पोसा हो जो निवि श्री मंघह धरिए । श्री गुरु चरण पसाउ श्री सोमकीरति सूरि भण्यू ए॥