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प्राचार्य सोमकीति
रचनायें निबद्ध की हैं। इससे पता चलता है कि यशीघर की कथा उस समय बहुत ही लोकप्रिय थी। प्रस्तुत यशोधर चरित्र पाठ सों में विभक्त काव्य है जिसका रचना काल संवत् १५३६ है। इसकी रचना कवि ने गोढिल्ल मेदपाट (मेवाड़) के भगवान शीतलनाथ के सुरम्य मन्दिर में की भी । कवि ने इसको निम्न प्रकार लिखा है:
नन्दीतटाख्यगच्छे पैशे श्री रामसेनवेवस्य । जातो गुणार्णवैकश्च (वश्चकः) भो मांश्च (मान्) श्रीभीमसेनेति ॥६१॥ निमितं तस्य शिष्येण श्रीयशोधरसंशकं । श्रीसोमकोति मुनिना विशोध्याऽधीयतां नुधाः ।।६।। वर्ष पनिशरण्ये तिथि पहगणनायुक्तसंवत्सरे (१५३६) थे। पंचम्यां पौष कृष्णे दिनकरविषसे घोसम्स्ये ही चम्। गोहिल्यां मेवपाटे जिनवरभवने शोतलेन्द्रस्प रम्ये ।
सोमादिको सिमदं नृपवरचरितं निमितं शुद्धभक्त्या ।।२।।
कषि की अष्टाहिकावत कथा एवं समवसरण पूजा लघु रचनाएं हैं तथा कथा एवं पूजा विषयक हैं । राजस्थानी कृतियाँ
भट्टारक सोमप्रीति की राजस्थानी भाषा में निबद्ध सात रचनामों की खोज की की आ जकी है। लेकिन राजस्थान एवं गुजरात के अभी कुछ ग्रन्थ-भण्डारों का सुचीकरण होना शेष है, इसलिए संभव है कवि की और भी कृतियों की उपलब्धि हो सके । फिर भी जो वृतियां उपलब्ध हो चुकी है वे कवि की राजस्थानी भाषा पर अगाध विद्वत्ता की द्योतक है 1 सोमकीर्ति के पास संस्कृत एवं हिन्दी जानने वाले दोनों ही तरह की समाज आती थी इसलिए उन्होंने दोनों ही भाषाओं में काव्य रचना करना श्रेयस्कर समझा। वैसे उस युग में इस तरह की परम्परा भट्टारक सकलकीतिने डाली थी और उसका अनुकरण किया महाकवि ब्रह्म जिनदास, भट्टारक ज्ञानमूषण एवं भट्टारक शुभचन्द्र ने । सोमकीति ने भी अपने पूर्ववर्ती मूलसंघ में होने वाले भट्टारकों का अनुसरण किया और अस्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की।
कवि द्वारा राजस्थानी भाषा में निबद्ध सात रचनाओं में यशोधर रास सबसे बड़ी कृति है । इस काव्य का रचना काल नहीं दिया हुआ है । हाँ रचना स्थान का अवश्य उल्लेख किया हुआ है जो मेवाड़ का गुडली नगर है। जहां प्रापने