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________________ आचार्य सोमकीर्ति १३ दी थी इसलिए ऐसा लगता है कि संस्कृत में यशोधर चरित्र की रचना करने के पश्चात् राजस्थानी में यशोधर रास की रचना की थी। इस आधार पर रास की रचना संवत् १५३९ के बाद की मानी जा सकती है । यशोधर रास को कवि ने सग एवं अध्यायों में विभक्त नहीं करके दालों में विभक्त किया है। जिनकी संख्या १० है । इससे दो प्रयोजन सिद्ध हो गये । एक तो काव्य में १० प्रमुख छन्दों - रामों में निबद्ध करना तथा दूसरह ढालों के माध्यम से श्रध्यायों में विभक्त करना | हिन्दी के अधिकांश जैन कवियों ने इसी परम्परा को अपनाया है । कवि ने काल के अन्त में वस्तुबन्ध छन्द का प्रयोग किया जो ढाल समाप्ति का सूचक माना जाता है । कवि ने रास का प्रारम्भ मंगलाचरण से किया है जिसमें पंच परमेष्डियों करने के पास रहने का संकल्प व्यक्त किया गया है। की कथा सार जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में पौध देश था। वहां राजपुर नगर एवं मारदत्त उसका राजा था। जो सुन्दरता में तथा दान देने में इन्द्र के समान लगता था। वह छह दर्शन के सिद्धांतों पर विचार करता लेकिन कौनसा दर्शन तारने वाले तथा कौनसा डुबाने वाला है इसको वह नहीं जानता था । उसी नगर के दक्षिण दिशा की ओर देवी का मठ था। जहां देश विदेश के स्त्री-पुरुष दर्शनार्थं आते थे । देवी का नाम चण्डमारि था। उसका रूप कज्जल के समान काला था । भक्तगण आसोज, एवं चैत्रमास में, नवरात्रा में उसकी विशेष पूजा करते थे। लोग पशु पक्षियों को लेकर प्राते थे । जब चैत्र मास श्राया सभी पेड़ पौधे पल्लवित एवं पुष्पित हो गये। तभी वहीं एक जोगी आया । उसके वहां कितने ही शिष्य शिध्याएं बन गये । मुखं लोगों को वह कितनी ही तरह से बहकाने लगा तथा कहने लगा उसको राम, लक्ष्मण, ब्रह्मा, विष्णु, महेश यदि दिखायी देते हैं। यह सुनकर राजा ने भी उसे दरबार में बुलाया जोगी अपने सात शिष्यों के साथ यहां आया। राजा ने सम्मान पूर्वक उसे आसन दिया। परस्पर में चर्चा हुई और उस जोगी ने कहा कि वह मोहनी वशीकरण एवं स्तम्भन मन्त्र जानता है, श्राकाश गामिनी विद्या जानता है, यही नहीं सभी रसायन मन्त्र तन्त्र का वह ज्ञाता है। राजा उसकी बात सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ । और उससे आकाश गामिनी विद्या देने को प्रार्थना की। जोगी ने उसे प्राशीर्वाद दिया और अपना शिष्य घोषित कर दिया तथा कहा कि चण्डमारी देवी के आगे जितने भी जलचर, थलचर एवं नभचर जीव हैं उनके युगल लाये जायें। इतना सुनते ही राजा ने अपने सेवकों द्वारा सैंकड़ों जीवों के युगल देवी के मन्दिर में लाकर
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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