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________________ आचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर राम एवं यशोधर चरित्र दोनों को उन्होंने उसी नगर एवं मन्दिर में समान किया था। . स्वागत प्राचार्य सोमकीति का जब विहार होता तो समाज में प्रानन्द का वातावरण छा जाता । हजारों स्त्री-पुरुष नगर के बाहर उनके स्वागत के लिए एकत्रित होते मौर बड़े समारोह पूर्वक उनको अपने यहां ले जाते । बिविध वाद्य यंत्र बजाये जाते और बधावा गाये जाते । स्त्रियां कलश लेकर उनका स्वागत करती। उनकी भारती उतारी जाती। इस प्रकार सोमकीति का विहार समाज में एक नये उत्साह को लेकर पाता। व्यक्तित्व वे स्वयं विशाल व्यक्तित्व के धनी थे। उनके दर्शन मात्र से ही विरोधियों का मद गल जाता। जब वे प्रवचन करते तो श्रोतामों को प्रध्यात्म रस में डूबी देते । कथानों के माध्यम से अपनी बात कहते सो लोगों को ग्रहद पूजा, दर्शन एवं स्तवन का महात्म्य बतलाते । जीवन को सप्त व्यसनों से रहित बनाने पर जोर देते । भट्टारक रामसेन एवं भट्टारक भीमसेन दोनों का ही उन्हें आशीर्वाद प्राप्त था। वे संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, रापमा बालो पर वार थे। बे वक्ता एवं लेखक दोनों ही थे। एक ओर वे संस्कृत में काव्य रचनाएं करते तो वहीं राजस्थानी में उससे भी अधिक काव्य कृतियां लिखना उनके लिए बहुत सरल कार्य था। वे किसी भी क्षेत्र में अपने आपको योग्यतम सिद्ध करते । यही कारण है कि तत्कालीन मुस्लिम शासक भी उनका पूर्ण सम्मान करते थे और उनका गुणानुवाद करते । समाज पर उनका वर्चस्व स्थापित था इसलिए जो भी कार्य चाहते जसे वे सरलता में सम्पन्न करा देते। कृतित्व प्राचार्य सोमालि संस्कृत एवं राजस्थानी दोनों के ही प्रकाण्ड विद्वान एवं लेपनी के धनी थे इसलिए दोनों ही भाषाओं में उन्होंने रचनायें निबद की - है। उनकी संस्कृति एवं राजस्थानी कृतियों के नाम निम्न प्रकार है--- संस्कृत रचनाएं १. सप्तव्यसन कथा समुच्चय १. प्रद्युम्न चरित्र ३. यशोधर चरित्र ।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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