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प्राचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर
मेगल उपरि घडीउ हो रजा, धरइ मान मन माहि । प्रवर राय मुझ समउ न कोई, नयणडे निम जिन चाहिं ।
। साहेल || ५८ ।। मानयंभ दीठि मद भाजि लह लह धजाय ए रूडी। परिहरी कुजर पालु पालि धरः मान मति थोडी
॥ साहेल 1 ५६ || समाचाहि हग मामा शिवार । रयण सिंघासरा बिठा दीठा सिधादेवी तराउ मल्हार
॥साहेस. ।।६० ॥ समुद्रविजय ए अवर बहु राजा बसुदेव बलिभद्र हरषि । करीय प्रदक्षण कृष्ण सुनमीया नयनडे नेमि जिन नरखि
॥ साहेल ।। ६१ ।। वस्तु हरषीया यादव यादव मनह पारणंदि पुरुषोत्तम पूजा रवि नेमिनाथ पलणे निरोपम अल चंदन अक्षत करी सार पुष्प चरु अनोपम दीप धूप सवि फलघणां रचीय पूज घन हाथ । कर जोडी करि बीनती तु बलिभद्र बंधव साथ ।। ६२ ।।
चुपई स्तवन करि बे बंधव सार, जेठच बलिभद्र अनुज मोरार। फरसंपुट जोडी अंजुली, नेमिनाथ सनमुख संभली ।। ६३ ॥ भधीयरण हृदयकमल नु सूर, जांइ दुःख तुझ नामि दूर । घर्मसागर न सोहि चन्द, ज्ञान कर्ण इव वरसि इंदु ।। ६४ ।। तुझ स्वामि सेवि एक घडी, नरग पंथि तस भोगल जड़ी । बाइ वेगि जिम बादल जाइ, तिम तुझ नामि पाप पलाह ।। ६५ ।। तोरा नुण नाथ अनंता कह्या, त्रिभुवन माहि घरणा गहि गह्या । ते सुर गुरु बोल्या नवि जाइ, अल्प बुधि मि केम कहाच ।। ६६ ।।