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बलिभद्र चुपई
नेमनाथ जी अनुमति यही बल केशव ने बिठा सही धम्मदेश का जिन तग्गा, खचर अमर नर हरख्या घा ॥ ६७ ॥
एके दीक्षा निरमल घरी एके राग रोप परिहरी ।
एके व्रत बारि सम चरी, भवसागर इम एके तरी ।। ६८ ।
वहा
प्रस्ताव लही जिरावर प्रति पूछि हलधर बात |
देवे बासी द्वारिका, तेतु अति हि विख्यात ॥ ६६ ॥ त्रि खंड केरु राजीउ, सुर नर सेवि जास | सोइ नगरीनि कृष्ण नु, कीणी परिहोसि नास ॥ ७० ॥ सीरी वाणी संभलि, बोलि नेभि रसाल ।
पूरक भषि प्रक्षर लक्ष्या, ते विम बाइ बाल ।। ७१ ।। चुपई
नेमिनाथ द्वारा भविष्यवाणी
द्वीपायन मुनिवर सांर ते करसि नगरी संधार ।
मद्य भांड जे नाम कहीं, तेह थकी वली बलसि सही ॥ ७२ ॥ पोर लोक सवि जलसि जसि, जे बंधव नीकल तिसि ।
महोदर जराकुमार, तेहनि हाथि मरि मोरार ।। ७३ ।। बार वरस पुरि जेतलि ए कारण होमि तेतलि 1 जिराबर वा अमीय समान सुखीय कुमार तव
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चार रानि ||७४ || कृष्णा दीपायन जे रषि राय मुकलाविनि पर पंड जाइ । बारबर राया, नगर द्वारिकां प्रावु राइ ।। ७५ ।। ए संसार प्रसार ज कही, धन योवन ते थरता नहीं । कुटंब सरीर सह पाल, ममता छोडी धम्मं संभाल ।। ७६ ।। पजुन संबुनि भानकुमार, ते यादव कुल कहीड मार |
छोड़ सवि परिवार, पंत्र महावय लीघु भार ॥ ७७ ॥ कृष्ण नारि जे प्राठि कही सजनसह मोकलावि सही ।