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________________ बलिभद्र चुपई १८१ चुपई एक दिवस माली बनि गउ, प्रचरित देषी उभु रह । फल्या वृक्ष सवि एकि काल, जीवे वैर तय्यां दुःखजाल ।। ४७ ।। फरी करी जोषा लागु बन्न, समोसरणि जिन दौठा नि । प्राध्या जाशी नेमिकुमार, नमस्करी पि जयकार ॥ ४८ ।। रुई भेट - भूर, ल, बोडीन: ण दमान | रेवि गिरि जम गुरु प्रावीया, सभा सहित मिव वाधीया ।। ४६ 1 कृष्पा राय सस वाणी सुपी, हरष बदन हउ निहुषंड घणी 1 ग्रालितोष पंचांग पसाउ, दिशि मन मुख थाई नीच राउ ।।५०।। राइ प्रादेश भरी रवकीया, छपन कोडि हीयढि हरषीया । भव्य जीव भाइ घस मसि, करि पौत एक मनमाहि हसि ।। ५१ पट हस्ती पाधरि परिगर , जाणे ऐरावण प्रवतरम । घंटा रवना बण टणकार, विचि विचि घर घम धम सार ।।५।। मस्तकि सोहि कुकुम पुञ्ज, झरि दान ते मधुकर गुज! यांसि हाल नेजा करिहरि, सिणगारी राइ प्रागिन धरि ।। ५३ ।। चङ्यु भूप मेगलनी पूठ, देइ दान मांगत जन मूठ 1 नयर लोक अंतेउर साथि, धर्मतरण धुरि दीघु हाथि ।। ५४ ।। दसरी ढाल । राग सही को। समहर सजकरी कृष्ण सांच रिया, छपन कोहि परिवरिया ।। छत्रत्रण शिर उपरि धरिया, राही रुषमणी समसरीया ।। साहेलडी जिवर बंदरण जाइ, नेमितणा मुरण गाइ । साहेलडी रे जग गुरु बन्दशा जाई ।। ५५ ॥ कोलतिवल घणु बाजा बाजि, ससर सबद सबे लाजि । गृहिरनाद नीसागा ज गाजि, बेगा वंस विराजि ।सा ।जिरण:५६॥ प्रागलि अपर नाचि सुरंगा, चामर ढालि घंगा । देइय दान प धार जिम गंगा, हीपाल हाप प्रभंगा । साहेलड़ी० ॥ ५३॥
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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