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बलिमद चुपई
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काहनड वेगि पयालि गउ, कमल नालि वासिंग नाथज । एकि एकि पन सहस्र पंखही, ते लेई याच्यु एकि घड़ी ॥ २२ ।। नाग सेज बिसहर जिणी नउघ, दत्य दारणद असुर सुभउथ । कंस मुष्ट चाणु रह काल' सोई मधसुदन नंद गोवाल ।।२३।। दानि कल्पवृक्ष ले कही, वर्ण अठारह पोषि सही । सूरपरिण परि जीता घणा, लेई दण्ड कीषां प्रापणा ।। २३१ । रूपि भयण तणु अवतार, सोल सहस घारु घगि नारि । रुषमणि सुपटराणी पाठ, नयने मृग जीता वनि काठ ।। २४।। रूपि स्यडी सीलि सती, पाप दूरकरि धरमि रती। देइ दान जिन पूजा सजि, कृष्ण रायनि अह निशि भजि ।।२।। सोनानी परिझलकि देह, दिन दिन बाधिनत्र नन देह । सीह राणी सुविलसी राज, अनोपम अवर नहीं को मान।।२६।। माता मेगलछि घरि जास, हेपारव घण घोड़ा लास । इणी परि वलशि अवनी भूप, प्रवर राइ नही जास सरूप |२७||
बलिभद्र प्रशंसा
तस बंधव अति स्या, रोहिण जेहनी मात । अलिभद्र नामि जाण्यो, वसुदेव तेनु तात ।। २८ ।। कनक वर्ण सोहि जिसु, सत्य शील तनु वास । हेम धार बसि सदा, ईशा पूरि प्रास ।। २६ ।। परीयण मदगज केशरी, हल प्नायुध करि सार । सुहष्ठ सुभट सेवि सदा, गिरउ गुणह भण्टार |13. || पाणी तस रेवती, सील सरोमरिण देह । धमंघुरा मालि सदा, पति सुप्रविहड़ नेह ।। ३१ ।। सुन सागर झीलि सदा, जातु न लहि काल । के बंध व धरणी परि रमि, कारि प्रजा प्रतिपान ।। ३२ ।।
चपई
गिरिवर गिरूह श्री गिरिनार- समोसरचा तिहा नेमिकुमार । समवसरण सोहि मंझाण, रच्यू धनदत्ते कर वषारण ।। ३३ ।।