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________________ १७८ प्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर सोरठ देश अपूरव कही, प्रवर देश कोइ ऊपम नहीं ।। ८ ।। नयर अपूरव दीसि घणा, कंधण रयण तशी नही मणा । वनि वनि वृक्ष तणु नहीं पार, रायण पूग पनि सहकार ।। ६ ।। नागवेल खजूरी एल, दाडिम द्राक्ष मंडप धणु केल । वाव सरोवर कूप प्रपार, घरि घरि मंचया सबेकार ।। १० । द्वारिका नगरी वर्णन नगर द्वारिका देश मझारि, जाणे इन्द्रपुरी अवतार । बार जोयण ते फिरतु वसि, ते देखी जन मन उलसि ।। ११ ।। नव खरण तेर स्वरमा प्रासाद, हद्द श्रेणी सम लागु वाद । कोटीधज सिहां कहीइ घणा, रन हेम होरे नही मणा ॥१२॥ याचक जननि देई मान, हीयडि हरष नहीं प्रमिमान । सुर सुभट एक दीसि घणा, सज्जन लोक नही दुर्जणा ॥ १३ ।। जिरण भवने धज वह फरिहरि, शिधर स्वर्ग सुवातज करि । हेममूरति पोढी परिमाण, एके रत्न प्रमूलिक जाणि ।। १४ ॥ जिन चत्याले मंडी घणी, दीठिया पथयारी बणी। धर्मवंत लोके घण पूर, दुःख दालिद तिहां नासि दूर ।। १५ ।। जिन मंदिर ते पूजा करि, भवह तणां पातिग परिहार । झालिर ढोल भेर भर हरि, वेग वस मधुर सरकरि ॥१६॥ नाचि खेला प्रवला बाल, वा इकांसी मरुज बिसाल । सरणाई रव सोहि घणा, धुलि पाप पूरव भव तणा ॥ १७ ॥ पुरी पाषि लगि रूह प्राकार, सोना सहित कोसी ससार ।' च्यार पोल तोरण सह घड़ी, माणिक मोती हीरे जड़ी ॥ १८ ।। समुद्र सरीषी पाई जाणा, अभिनत्री इन्द्रपुरी परिणाम । उत्तम लोके पूरी खरी, इन्द्रादेशी धनपति करी ।। १६ ।। श्रीकृष्ण महिमा तस पनि सोई क्रिशन नरेंद, गृह गण माहि जिम पूनिमचंद । सबह परवत्त मेर गिरीम, छपन कोटि कुल कृष्न अधीश ॥२०॥ बाल परिण घड्या सुर बार, घरघ, गोवद्धन करि तीणी वारि । गोवत्स रख्या कारणि जेण, संख पत्र धनु सा तेश ॥२१।।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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