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________________ बलिभद्र चुपई प्रणमी जिनवर जिनवर रिसङ्, जे नाम जुगला धर्म निवारण : संसार सागर तरण तारण सारद सामिण बली नवु सुमति सारठे वेग मागु । कूड कुबुधि सवि परिहरु हंस बाहरण तुझ पाय लागु । माव भक्ति पूजा रची साहि गुरु अलण नमेस । • कर जोडी कवियण कहतु हलधर चरित कहेस । १ । चुपई ने लहुँ व्याकरण न सहु छंद न लहुं प्रभर न लहुं विद । है मूरख मानव मति नही । गीत कदित नवि जाणु कहीं ।। २ ।। कोइल समरि जिम सहिकार । वप्पहीउ समरि जल धार | चक्रवाक रवि समरि जेम । गुरु वाणी हु समरु तेम ।। ३ ।। गुरु वचने अक्षर पामीइ । गुरु बनने पातिक वामोइ । गुरु वचने मन लहीइ ज्ञान 1 गुरू वचने घरि नव निधान ।। ४ ।। दहा सूरज उग्यु तम हरि, जिम जलहर वूठि ताप । गुरु थपणे पुण्म पामीर, झसि भवंतर पाप ।। ५ ।। मूरत परिण जे मति लहि, करि कवित अति सार । ब्रह्म यशोधर इस काहि ते साहि गुरु उपगार ।। ६ ॥ सो ए गुरु वाणी मनि धरी, कवीयपनि प्राधार । रास कह रलीयामणू, अक्षर रयण मंडार ।। ७ ।। चुपई अवनीय जंबूदीप वखाण । भरह ख्येत्र तस भित्तर जागि ।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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