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युद्ध की भीषणता
रामसीतारास
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तब रावण बदल करोनि लंकां यकु रणभूमि माम्बु ॥ सा० ॥ बाहर बीपाश्री र हरेरा रंग भरिए । प्रासन को पोवारी साहेबडी मनोही सहस बीयार ॥1 प्यार सहस्त्र प्रक्षोहणी दल मलीय वह निसार | सहस्य शोहणी श्रीराम कलिलि बार ।
शामभेरी ते तं बहु परिनाथ दह दिषि बाजए । नीता घण सु लद्द संनलि वीर बहु परि गाज ! ॥
वाम हाल मास राजरीक
गाजि बीर पड करि सालां बाह्य भरि तिर धार । दुवड धड धड पर लॉटिंग तन हुए सवार 11 साली || भूभे रघुवंती राम लक्ष्मणा बीर महावल भांजि
राति नही ठाम साहेलडी झू रघुबंसी राम ॥१॥
वीर |
रंगि बोर साहेडी ||२
रामनाम तरणी पार पहिरो हनमंत वीर सरि च । राक्षस र चरचा बरिवाचि जादु सम ए रूट ||०||३|| विभीषण रावण समर्वाड लागा, भागा रथ रे विमान । कति समरि करि रात्र लोधी, लक्षमण धरि अभिमान
सुत्रीय प्रगद नल नील राज | मरु देवि सति कुंभकरण मेघ मयय इंद्रजित संग्राम र
समाजासा
लक्षमण रावरण भवम् सनमुख रही विभीषण बाल्यु वांशि । शिकतिरे यता परी दमन हुसि || लंकेसर तब कोपि बडी सक्ति मेल्ही वीर पाडच । हनमंत वीर विशम्या प्राणी शक्ति भेद +िणि काळ ॥१०१॥३॥ तत्र वा मनि विल हौ समरिउ चक्र विशाल |
आरा सहस्य में तेज पुंज करि आयु ते गुणमाल ॥ २ ॥ ७ ॥ रावरण भरिए रे बाला लक्षमण कोइ यम तहाँ श्राज | स्रोताराम रमण मुझ प्रासु सुखिय स त
राज
।। सार ॥८॥