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प्राधाय सोमीति एवं ब्रह्मा यशोधर
अठार सहस्त्र ममि राणी मंदोदरी इम बोलए । मुरिण न संत विख्यात मुनि बल प्रबर नहीं तुझ तोला ॥४॥ अथर नही तल सम बडि रावण न्यायत सवि मविचार । ससीय सीता तणु हरगति कीधु सीधु अपजस भार ॥मा ।। 'जिसपरमिठो राम राम रायु । विभीषण लंका राज थाम्य साहेलडी पान सपनाम दी । दीठो अभिनवु सपन स्वामी कृपा करू मुझ उपरि । सती शिरोमरिण जनक तनया मेलि राम तेउरि । परि रमरिण रली रंग ने नर राता ते बिगूता नह परे 1 सक्षस बसि विष वेलडी ए तु आपि प्रापि ए सुदार 1५।। मुंदरी मंदोदरी तासी मुली वाणी रावण धरि अभिमान । विभीषण भरण भणि सुणु राम दशानन । हवि य गई तुहा सान साहेली काई न जाणु तुम्हे आज। मलनील जंबूनाद हनमंत सुग्रीव विमान बांधी सिंघु बाज
साहेलडी काइ न जाणु तुम्ह प्राज ||वः ।। प्राज पाज उलंघीया धीराम लक्षमण धावीया। सकल दल बल चपल बानर सैन सहित ते प्रावीया। हवि वेगविलास बिहि पहिला राम राणु मनायोइ । सीता दीजि प्रीत कीजि एम रूड भावी ॥६॥ भावीइ ही परि रूडा हो बांधत्र मनि म धरे प्रहिकार । प्रमीय समागा बिभीषण बोल बोल्या । कोप्यु रावण गमार साहेलडी तब जाण्यु विपरीत । घरि मानी विभीषणह विचार । हबि कीजि जीवहित ।। सा०।। तब जाण्यु विपरीत ॥च०।। विपरीत जाणीय होइ प्राणीय यीन प्रक्षोहणो दल भावीयु यिमान बड़ी बहु करणय रयण मु विभीषण वीर ते मावीयो । कर कमल मोडवि मौनि मुगटहं राम तणे पगि प्रापियु । रामि विभीषण भगत जारणी पंचमु बांधव थापियु ||७१ थापिउ विभीषण प्रचल लंकापति सतीय सीता मनि भाव्यु ।