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प्राचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर
लक्षमण भणि तुझ मारीय रावण विभीषण लंका राज श्रा जनक तरणीए दुहिता सीता रामचन्दन प्रा । सा० ॥ ६॥ तब कोपाहण हवो लंकेसर लक्षमण बोल न भाभ्यु । फेरीय चक्र मेहत्यु तौणि प्रतिबल लक्षमण हाथि
ते प्राव्य ।। मा० ।। १० । रामतणे पग लागीय लक्षमण बक मूक्यु रे पवारि। रेदीय हृदय रात्रण तीरिण पाउच गक्षसनि
प्रावी हारि ।। सा ॥ ११ ॥ ग्याहरवीं डाल
मास भमानलीनी संका विजय पर प्रसामता
हामास २६ बिसातु गम: 5 निम ग आणि तु ।। रघुनंदन दलि जयह वोलु ममारुलीनी
वरतीय राम नीयाग तु ॥ १॥ लंका नगर सोहामणु तु भमारलीनी लीयांत तोरण चंग तु । धवल मंगल गीत नाद करीतु भमारुलीनी पात्र नारि
नवरंग तु ।। २॥ धरि मंदिर महोछच होतु भमारुलीनी गुडीयम स्वर करेई तु । राम नाम राक्षस अपितु भमारुलीनी पिंडित करि विहां
सांति तु ।। ३ ।। होल तिबल भेरीन तणा तु भमारुलीनी नाद दुर घमा आगि तु । रामदेव गय वर बैठा तु भमालीनी प्रागिल बाजि
नीसाग तु ।। ४॥ शिरि वर छत्र सोहमणु तु भमारुलीनी चमर ढली मक्षीर तु। माचक अन वांछित पूरिनु भमारुलीनी दान दे विभीषण
वीर तु ।। ५ ।। देव सयल पानंदीया तु भमासलीनी कनक धारा बरपति तु । मनवा वन भणी चालीया तु ममारुलीनी यानक मनि
हीउ हरप तु ।। ६ ॥