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रामसीतारास
रामस्वामी मुगति गामी गलि लागी रोयाए । बेहू बंधव वनह मझमि सीता काजि जोवए ।।१०।। जोता चिहं दिसि गमलक्ष्मी धरनवि पामि कीही त्रागु रे । तिरिण प्रवसरि री जीपीनि दिराषित प्रावी पगे लागु र ।। च ०।।
औरण बिराधित बात बांकी एफ काज तो सारीये ।। रावण तरणो जमाइ तम्हे तां पर दूषण पग मारियो । हवि इमि कीजि ठाम लीजि भेद फुल हुं तील सही। पंयाल लंका नहीं संका सीता सुधि कसूति हो रही ॥११॥ तिहां रहीनि रामकी जसे सफल काम घिमान बिसु स्वामी
अल तणे रे। विराघित कुमरनी वाणी सांभली राम भगिण धन जीवी
तल ती रे ॥च॥ धन विराधित दोहिली वेलां परोपकार चडावीया ।
इम कहीय विमान चड़ीया पाताल लंका प्रावीया । मुप्रीव से भेंट
साहस्समल्ल साहस गति खग सुग्रीव रूपि मारीयो । सुग्रीव तारा सेस भरिनि कपि काज ते सारीयो ।।१२।। सारीय काम सुग्रीव इम जागी विमान विसी सीता मुघि गउ रे ।। गयरणंगरिण धकु दीठु रतन जटी तब प्रानंद मनमाहि
भयो रे ॥च ।। भयो प्रानंद प्रावीय सुग्रीव रतन बदी नि प्राण ए । कछु न भ्राता राम कांता भुद्धिजु तु जागाए । रतन जटी तब भरणे सुग्रीव बात सुणु न अङ्ग तणी। जे जानकी जनक तनया रावण लई मुयो लंका धगी ।।१३।। घणी त्रिभूवन तणु राम भेटामा तल्ले मल साथि
सहोदर है। सयल कथावत्तिय सीता तरणी राम स्वामी आगिल कहुं रे ।।१०।। कहीय सुग्रीव रतन जटीनि राम कलि ते पाणीयो।