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प्राचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर चितातुर यो लंका पंठो प्रमीदावन माहि मूकी रे ।।
मकीय प्रमदा कतह मझमि यानकी इस चित करी । अशोक वाटिका वर्णन
असोक तरतर तलि निरमल सती चिठी प्रासण पूरी । शृगार परिहरि बडिहि मन धरि नीम लीयो पाहार नौ । राम स्वामी मुद्धि पामु तब करू हु पारणो ।। ६ ।। पारणो तब जब प्रभु सुधि पामु ना सीसकत पाय रे । एवउ निरधारिउ यानकी सेवकी हुई राक्षसी स्वगीर ।। च ।। परदूषण कीर लक्षमण भणि विचक्षण राम स्वामी भावीमा । थानकी बनमाहि एकली मूकी का सही पाद्रीया ।।1
घाव्या एकली मेश्ली यानकी कूड कीघु खगि घणु रे । राम की अथा
हदि वहंत वलो राम जगनाथ साथम मेल्ल सीता तणु रे ।।१०।। सीतष्टि तस् वाणि सांमली राम चाल्य रंग भरी। भावीय मुफा माझि स्वामी नवि दीठी ते सुदरी । सती सीता साद करसा कीधा कर्म ते सहाए । तर वरह डंगर परति श्रीराम सीता सुधि ज पूछए ।। पूछए मुदि श्रीराम नरेश्वर सरोवर काठि ऊनु रही रे । कह न चकोर तह चक्रवाकी दोषी सीतल मुभी सही रे ।। 1011 सहीय सीता हरण हो कवग्ग पापी लेइ गयो। कि कयान प्रावी भक्षण कीधु तेह तरणो कविरण हीयो । साल मकल कि सिंघ स्वापद सती सीसा मुण्ड़ि पड़ी। वतह् मज्झमि काइ मेली कवरण पुहुती यम घडी ।६।। जम रूठो तीणि अयसरि जाण्यो परदूपण षग हण्यो रे । लक्षमण वीरि सिर तस छेदी भेदीय रिपुदल जाण्यु रे ॥३०॥ जारणीय रिपु दल उपरि कुवर विराषित ते भावीयो । विरीय मारीय बहंत लक्षमण राम कह्नि ते प्रावीयो ।