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रामसीतारास
धामि लक्षमण वीर विचक्षण एह संकट टाल गए ।।१।। टानु रे संकट मुझ तणां हो देवर सहोदर भाबु विद्याधर रे । सानधि सयस सुरासुर कीयो लीयो यस सीवल तरणो रे ।।२।। सीयल संपन, मेषः सनुप पर कर र एगा। तात जनक कनक काका वेगि विहिला पावयो । राम राम राम नाम क्षणि आणि वलीन वाचा मूका । वेह कुल कमल उद्योत किरिणी सतीय सत्त न चूकए ।।२।। सत्तीय सीता गयएंगरण रावण लालचि करय पारन रे। पंचवाण घणु जीवन भेद्य वेम्पु तह्न रूपि सारन रे ॥१०।। सार सुदरि सुरवि वाणीय प्रान सुखी तिहां हुई। सुण रे दुष्ट कुनष्ट स्वानर सेह नारि लक्षण जुई । हु सतीय बहुमति संत कंतह राम मुझ तणो अातमा । अन्य नर जे समल तिहूयण मुझनि ते बंधव समा ॥३॥ बंधव समा मुझ सुरपति इंद्रह घरगोन्द्र रवि भिकर रे । सती सुप्रालिम करे स हो मुरषा पुरधाम मेल्ल
कुसुम सर रे ।।१०।। कुशम सर तु भाव परिहरि सील सबल सत्ती तपो । जु य व लोटि बन फूटि धुरण हुइ गगनिनि घणो । सौधर्म स्वर्ग जो ठाम छोडि मेर मंदिर चाल ए । इम जाणी विवेक मारणी एह वपण इम बोलए ॥४।। बोल्या बोल जु केलि कि मूकि जल जलस्वरे । प्रष्ट कुल गिरि पापाल जोपिसि तुहि नयि सीयल
परिगुरु रे ||१०|| परिहरीय सील जे नरह नारि संसार माहि घणु भम्या । परनारि लंपट. दुष्ट कुष्ट से सातमि नरगि रम्या । जिहां छेदन भेदन तलीय तापन सूलारोपण प्रति धनां । तेत्रीस सागर प्रायु पामी दुःख भोगवि तिही तणां ॥शा सतीय सीता तणी वाणी सांभली रावण राणु होउ दुःखी रे ।