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रामसीताराम
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गन्धर किन्नर तुवर गाबए से गुण पाम रे ।। ११ ॥ मयमल मेगल पतिबल उपरि ढालि सम्बाडी रे । चिहुँ दिशाइ धज मेंदीय हेलीय जोवये नारी रे ।।१२।। गय पर चर प्रारोहीया सोहीया जिम जगनाप रे । पञ्च शयः पा काजए गाजर अम्बर सारं ॥१३।। शिरि गिरी छत्र सोहा मरणा भामरणई बोलए चंगरे । चार बाल गंगा जवणीय जीवन जाणुए गंग रे ॥१४॥ धवल देइ वर कामणी भामणी लुछणां फोन रे । राम नाम संमतहां जनमतमा फस लीजिए रे ॥१५॥ (२)
भास पी हीं।।
सीसरी दाल विशाह रसव
तीजइ फल बहुबंग । एक नापि नक नवरंग । कनक धारा मेघ बरसि, देवीय दशरथ हरषि । एक मानन्द रस दावि, बीजीय भावना भाषि ।।१।। छाणवर सहामु ते मढए, बहु परिस लोका पठए । सुललित ते गुणग्राम · उत्तर भाति धीराम ॥२॥ बाजा बहु परिबाजिनादि निसारण गाजि ढोल तिबल भेरी भावा, ताल कंसास सोहावा ॥३॥ तिम तिम वाजि मृदग, तिवसीय साद सुरंग ।
इम बर सोरण मान्या, सान मनि बह भाव्या ।।३।। तो रहए एवं विवाह मण्डप का वर्णन
विदेहा अक्षा लीधु', सासू गर पुखणु की । पर पथरी माहि प्राध्या, सोहासपीमि मधाच्या ।।५।। पण्डित बोलए मात्र, लमन तणा प्राग्वा यस्त्र ।। सुभ बला तिहां जोइ, परति मंगल सोइ ॥६॥ प्रय योग संघसऊ भाग, सुलगनि हथोलु बाप । लब हर जय जयकार, परमस्य यानको बार ७