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प्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर
सीता का सौन्दर्य
से सुबह ग्राम मंदिर काम रूपघाम रसातली । चंद्रवदना मृगहनयना सघनधन तन पातली । ते हाव भाव बिलास विच मलय लावण्य वापिका । गौर वर्ग सुवर्ण छाया सुगंध परिमल कूपिका ।७।। कूपिका सुषतरणी सहीयर ए साथि घणी, वरमाला लेई पाणी प्रावीयाए । वेर्दाय उपरि चढावीय, इणीपरि यानकी सुंदरि भावीयाए ।॥ो०।। भावीया जन मन सबल सुदर देषि राय चमकीया । रंभराणी कि तिलोत्तम अंब पदमनि समकीया। एह पंध सर वर समरभेदीय प्रनंग रंग बहु उपना ।
चित्त चपल चलति चलब सकल मनोभाव नीपना | स्वयंवर का वर्णन
नीपना जय जय पंच शबद घन. कलिरव करि जन मन उलास । बोलए विरद घना अनेक रायां तणा | प्रताप सोहामणा गुगा निवास ॥त्रो०॥ गृणनिश्वास सहास बोलयि, सयल भूपति जोवए । प्रहंकार धरी करी एक उठवे धनुष कहिलू जाई सोवए । एक राय उपाय चीतवि घनुष साहामु जोथए । सबल बल अभिमान सुदर सकल महंकार खोबए ।।६।। षोबर पुरुषारथ तब राजा दशरथ । सबहुं परिसमरथ इम भणिए । उयउ तम्हे राम देवनुरकरि तह्म सेव, घनुष बढाच हेव आपणु एवोका