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सीता स्वयंबर
रामसीतारास
लक्ष्मीयश्वर अर भरत सत्रुधन पारि पुत्र घर जाणी ।
कुलकम दिनकर ता
देव परमह गुरु परीक्षरण रामचन्द्र क्षतिपती ॥ ३ ॥ क्षतिपती मथुरा नयर नरेसर जनक भूचर बर राज करीए, तस तणी पटराणी सतीय सिरोमणी.
विदेहा सुंबरी एह गुए धरिए ।
- ती जे पाणि बागी सारद सामिण आशी ।
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तेह विहि सुदरि यानकीय वपाणी |
कालान विज्ञान संपन रूप युथन अवतरिये !
जनक जणी पुत्री सीता महादेवो घरमभार तिणी वरये ॥४॥ धरयो धरम भार जनक नरेसर देषीय रूप मनिगमको ए ।। हक्कारिया परवान रायां दीड बहुमान गयल मली तिहां विचारीउए ।
शोक-विचारी तिहां सयल भूपति सीता समंवर मांडीइ ।
अवर राजा दुष्ट दुरजन तेह तणां मन खांडी
नयर बाहिर बन निरोषम मेडा मंडप घालावीया ।
कंकोतरी चिहुँ दिल भोकली राय तन समल ग्रुप बोलबोया ||५|| श्रावीया सर्वेमली बंशु सुष महाबली ।
पगधरा मंडलीक भावीयाए ।
मलीयाए च्यारि बंस छत्रीस ए ।
कुलई तिहां रामनरेश र भावीयाए | त्रोट |
धनुषे लोपीया ||६||
प्रावीया बिदिश चपटचुरी कनक फेरी तिहां घडी । रण माणिक उर मोतील हीरा हौर करण घणी जड़ी । झगमगति दह् दिशि मुइ सरासन पवरी उपरि रुपीया । बारवीयर तणु तेजह लिहा तो लोपीया शशिकर वजवि परिकर, सागरावर्त्ती वर अनुयनाम | सपल श्रृंगार करो यानकी सुधरी, अवनि उपनि परिसुण ग्राम 1