SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ आचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर रानी महिदेवी के दुःस का ठिकाना ही नहीं रहा। वह जिला करने लगी कि फिस प्रकार राजा के बिना उसका जीवन कैसे व्यतीत होगा । वह पति होते हुये भी अनाथ हो गयी । जैसे तैसे करके रानी ने अपना मन लगाया । पुत्र का पालन होने लगा । आठ वर्ष का होने पर उसने सभी कलाओं को सीख लिया। कुछ दुष्ट राजाश्रों ने जब उसके राज्य में लूटमार प्रारम्भ की तो सुकौरान बालक होने पर भी लड़ने को तैयार हो गया। माता ने उसे बहुत मना किया। लेकिन सुकील ने एक नहीं मानी । उसने सभी मित्र राजानों को पत्र लिखा। घोर सेना एकत्रित करके युद्ध के लिये प्रस्थान कर दिया। चतुरंगिनी सेना तैयार हो गयी घुडसवार, रथ सवार, प्रादि योद्धा तैयार होकर चलने लगे। ढोल ढमाके बजने लगे । संख फूक दिया गया । एक रथ में स्वयं राजा बैठे। उसके साथ ही अन्य वाद्य यन्त्रों के साथ शहनाई बजने लगी । राजा सुकोसल अपनी सेना के साथ सर्व प्रथम मथुरा नगरी पहुंचा। वहाँ हाहाकार मच गया। यमुनापुरी को नष्ट कर दिया गया। उसके पश्चात् अयोध्या नगरी आये। वहाँ से गंगा किनारे पर आकर पड़ाब डाला । गोपाचल के राजा से दंड लेकर छोड़ दिया गया। इसी तरह उज्जैन नगरी के मामले में भी दण्ड स्वरूप उसे अपने में मिला लिया । चारों ओर सुकौशल की जय जयकार होने लगी। कोई अपनी कन्या देकर कोई हाथ पैर जोड़कर अपनी जान बचाने लगे । इसके पश्चाद गुजरात, सौराष्ट्र, कटक, लाडदेश, महाराष्ट्र, काशी देशों पर विजय प्राप्त की । विधाधरों के साथ उसने लंका पर विजय प्राप्त की । कौसल का वाट (मेवाड मुलतान, हस्तिनापुर, पोदनपुर, पाटलीपुत्र, श्रादि नगरों में जोरदार स्वागत हृभा । अष्टापद (कैलाश) के थालयों की उसने चन्दना की इसके अतिरिक्त अंगदेश, बंगाल, मगध, पंचाल, राजगृही नगरी के राजाओं से दण्ड लेकर उन्हें छोड़ा गया। इस प्रकार चारों दिशाओं में अपूर्व विजय प्राप्त करके पचनी रानी से विवाह करके, हाथी, घोड़े, सेना के साथ मुकौसल ने नगर में प्रवेश क्रिया । राजा के स्थान पर तोरण द्वार समाये गये, मंगल गीत गाये गये। करके पुत्र को गले लगाया । रत्नभण्डार एवं विशाल स्वागत के लिये स्थानमहिदेवी माता ने दौड़ राजा सुकौसल श्रानन्दपूर्वक राज्य करने लगे । तथा उसकी रानियां राजा को अपने विभिन्न हाव भावसार आदि से प्रसन्न रखने लगी। एकएक बरस व्यतीत होने लगा । सोलहवें वर्ष के प्रासे ही माता ने अपने रक्षकों स
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy