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________________ कविवर सांगु १०३ कहा कि यदि कोई माधु नगर में प्राता हुप्रा दिखलाई पड़े तो उसे नगर में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए। कुछ समय पश्चात् कीतिधवल मुनि उधर प्राये। नगर के बाहर ठहर गये । मुनि के शरीर पर घाव का चिह्न देखकर महिनेत्री ने उसे पहिवान लिया वह रोने लगी। सुकौसल राजा ने इस बात को सुन लिया। अपने पिता मुनि को पाहार न मिलने की बात से उसे और भी दुख हमा। और वह भी दुखित मन से वहीं चला गया जहां मुनि बैठे हुए थे। सुकौसल ने वन्दना की तथा मुनि से उपदेश सुना । और स्वयं ने वैराग्य लेने की घोषणा कर दी। अपने प्रिय पुत्र के वैराग्य लेने के समाचार से उसकी माता को प्रत्यधिक पीडा एवं संताप हमा मौर परिणामों की संक्लेशता के कारण वह मर कर ध्यानि योनि में उत्पन्न हुई। सुकौसल मुनि तपस्या करने लगे । ग्रीष्म ऋतु में पहाड़ की शिला पर, वर्षाऋतु में गिरिकन्दरा में, शीत ऋतु में बर्फ पर उन्हें प्रात्मध्यान करने में बड़ी प्रसन्नता होती । बारह भावनाप्नों का वे निरन्तर मनन करते, मार्तध्यान एवं रौद्रध्यान का उन्होंने सर्वथा परित्याग कर दिया, अठारह दोषों से वे रहित होने लगे। चारों काषायों को छोड़ दिया, पाठ प्रकार के मदों का त्याग कर दिया, बारीस प्रकार की परिषहों एवं पन्द्रह प्रकार के प्रमादों से वे मुक्त हो गये । इस प्रकार की अवस्था को प्राप्त होने पर जब वे एक दिन तपस्या में लीन थे वह ध्यानी घूमती हुई उधर मा निकली वह भूखी थी इसलिये उसने तपस्या में लीन मुनि के एक-एक प्रग को खा लिया । लेकिन मुनि का ध्यान भी सर्वोच्च था । वे जरा भी विचलित नहीं हुए और तेरहवें गुणस्थान में पहुँच गये। उन्हें कैवल्य हो गया और तत्काल मुक्ति पद को प्राप्त किया तथा जन्म मरण, सुख दुःख से सदा के लिये मुक्ति हो गये। क्यानिनी ने शरीर को खाने के पश्चान जब उसने अंगों के निशान देने पांव के नीचे का कमल विह्न देखा तो उसको पूर्व भव का भान हो पाया। यह स्नेह बिडल होकर रोने लगी। एक मुनि के उपदेश से उसने जीव हिंसा न करने का निश्चम ले लिया और अनशन करके देह त्याग दिया और स्वर्ग प्राप्त किया ।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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