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________________ कविवर सांगु १०१ राजा भी राजपाट छोड़ कर साधु जीवन ग्रहण कर लेते थे तथा कभी-कभी छोटी अवस्था में भी ये मुनि जीवन अपना लेते थे। साधुमों का समाज पर विशेष प्रभाव था। इस प्रकार ‘सुकोसल चुपई' हिन्दी के मादिकाल को एक उत्तम कृति है। जिसके प्रचार प्रसार को पावश्यकता है। काव्य की पूरी कषा का सार निम्न प्रकार है। कथा इस पृथ्वीतल पर असंख्यात द्वीप हैं। उनमें जम्बूद्वीप सबके मध्य में स्थित है। उसी जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र है जिसकी विशेष महिमा है। उसमें अयोध्या नगर है जहाँ दान पुण्य होता रहता है। धनिक लोगों की जहाँ घनी बस्ती है 1 गरीब तो कहीं दिखता ही नहीं। नगर में चौरासी चौपड हैं तथा दुकानों की तो संख्या करना भी कठिन है। नगर की पूरी लम्बाई-चौड़ाई १२ योजन प्रमाण है । यहाँ कं धे गकान थे जिन पर ध्वजाए फहराती रहती थी। महलों में बैठी रमणियां गार करती रहती थी : जिनमें समय 5 राशि संग्रहीत थी। नगर उद्यान, सरोबरों से युक्त था तथा जिसमें पनेक महल थे। इसी अयोध्या नगरी में 'कीतिधवल' राजा सपरिवार राज्य करता था। उसकी रानी महिदेवी थी जो सुन्दरता की खान धी। एक दिन कीतिधवल के मन में जगत से वैराग्य हो गया तथा उसने मुनि दीक्षा लेने का भाव प्रकट किया। उसने अगने मन्त्रिमण्डल के सदस्यों को बुलाया और दीक्षा लेने के विचार उनके सामने रखे । वे उस समय तक पुत्रहीन थे इसलिये प्रधानमन्त्री ने उनसे पुत्रोत्पत्ति तक वैराग्य नहीं लेने के लिये निवेदन किया। क्योंकि पुत्र के प्रभाव में मारा राज्य ही समाप्त हो जावेगा । कुछ समय के पश्चात् रानी गर्भवती हो गयी। रानी ने पुत्र जन्म दिया तथा उसका नाम सुकोसल रखा गया । बालक को छिपाकर रखा गया जिससे राजा को पता नहीं चल सके । एक बार सरोवर पर बालक के वस्त्र धोने गयी थी तभी बात ही बात में एक ब्राह्मण से दायी ने कह दिया कि रानी सुकौसल को पाल रही है। ब्राह्मण के मन में बात कब रुकने वाली थी। उसने तत्काल राजा से पुत्र होने की बात जाकर कह दी। सारे नगर में पुत्रोत्सव मनाया गया । गुड़ी उछाली गयी । राजा ने ब्राह्मणों को सूब दान दिया । यारकों को वस्त्राभूषण से तृप्त कर दिया। रानी महिदेवी राजमहल में गयी। राजा ने बालक को गोद में लिया । उसे खिलाया, पालना झुलाया तथा प्रजा की पालना करना ऐसा कहा और उसका राजतिलक कर के राजभवन से चल दिया। राजा के इस प्राचरण से नगर में हाहाकार मच गया ।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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