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कविवर सांग सूकासल यद्यपि प्रायु में बहुत छोटा था लेकिन उसकी वीरता, साहस एवं पराक्रम देखते ही बनता था। उसकी सेना प्रत्यधिक दक्ष एवं संगठित थी तथा शत्रु सेना को परास्त करने में सक्षम थी इसलिये अधिकांश राजा महाराजा बिना युद्ध के ही अपनी पराजय मान कर सुरिल की शरण में ले भोर यथोचित दण्ड देकर उसकी पराधीनता स्वीकार करली । बह अपनी सेना के साथ गुजरात, सौराष्ट्र, कोंकरण, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि सभी प्रदेशों को रोदता हुमा उन पर विजय पताका फहरायी।
गूजर सोरठ प्राणि लीध, नयीयाडा बंदर विसकीध। भांजि तरुपर पाडि बार, साध्यु कुकणन करणाट ।। ५८ ।। लाड़ देश मरहठ मलहार, साध्या कन्नड तिणि वार । कुडलपुर नु कहीइ पीस, पापी सावए नामी शीस ।। ५६ ।।
सुकीसल राजस्थान के मेवाड़ एवं मारवाह भी गये तथा हस्तिनापुर एवं मुलतान भी गये । वे गौड देश एवं खुरासारण भी गये और वहां के सभी राजापों को सहज ही वश में कर लिया। जिसने भी उसका मार्ग रोकना चाहा उसी को बन्दी बना लिया गया।
मेदपाट मुरकु मुलतारण, खांडा बाले माघ्यु खुरसाण । मरुस्थली बहुली बहु जाण, गौड चौड़गा जणु बखाण ।।
वृथा डर सु साध्या देश, पोयणपुर कीधु परवेश ।। ६३ ।। इस प्रकार सुकौसल ने पारों दिवानों को जीत लिये । सब जगह उसकी प्राज्ञा मानी जाने लगी। उसे अनगिनत लक्ष्मी, सम्पदा एवं सम्पत्ति प्राप्त हुई। हाथी, घोड़ा प्रादि की लो संख्या ही नहीं थी। कितनी ही राजकुमारियों से भी उसने विवाह कर लिया ।
राह देश सब साघिया उत्तर दिक्षण जाणि । पूरब पश्चिम साधिया, चिहु दिशि वरती आणि ।। ६६ ।।
लक्ष्मी प्राणी लक्ष गणी, धन करण कंचणसार । परणी प्रलीयल पपणी, हय गय रयण मंडार ।। ७० ।।
सुकौसल अयोध्या भाकर सानन्द राग्य करने लगा। चारों ओर सुख