SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर शान्ति भो । प्रजाजनों को अपार सुख था । नगर में कहीं कोई दुःखी एवं निर्धन नहीं दिखता था। सुकौसल की रानियां भी क्या थी सौन्दर्य एवं लावण्य की मानों प्रतिमूर्ति ही थी । के विभिन्न प्रकार के शृंगार करती और अपने प्रियतग का मन प्रसन्न करने का उपक्रम करती । कभी ये काले वस्त्र पहिनती, कभी पीले कभी केसरियां रंग के और कभी दूसरे रंग के । वस्त्रों का पूरा मैचिंग रहता। से ही प्राभूषण, एवं वैसा ही रंग सभी मिल कर इतनी अधिक सुन्दर लगती कि उनका सौन्दर्य देखते ही बनता था। पीला सोवरण सोहती ए, पीली चूडी नाहि तू । पीली झालि झलामलीए पीला केर त्यहि तु ॥ उजल झंझार झलफत्ती ए, उजल रयण प्रपार तु । उजल दरपण नरपती ए, उजल मोतीय हार तु। इस प्रकार अपार सुख सम्पति को भोगते हुए पर्याप्त समय निकल गया। समय को जाते हुये देर नहीं लगती । पुण्य की महिमा को कौन नहीं जानता | पुण्य से ही मश, कीसि, धन सम्पत्ति तो मिलती है। पुन्मि कीरति उजली, पुगिय जम मंडार । पुणिइ पिसुण पीडि नाही, पुण्य पृथ्वी माहि सार ।। सुकोसल के लिये १६ वें वर्ष में राज्य सम्पदा त्याग कर वैराग्य लेने की भविष्यवाणी यी । इसलिये राजमाता ने नगर में साधु मात्र के लिये प्रवेश बन्द कर दिया था। कुछ समय पश्चात् मुनि कीसिवा प्राये लेकिन वे भी नगर प्रवेश नहीं पा सके । राजमाता सहिदेवी का हृदय मात्सर्य से भर गया। लेकिन जब सुकौसल को यह बात मालूम हुई तो शीघ्र ही नगर के बाहर गये और मुनि महाराज को विनय सहित नगर में लाने का निश्चय किया। सुकोसल ने वहाँ जाकर निम्न प्रकार निवेदन किया जई सकोसल नामि मोस, तम्हे कहि उपरि पाणु रसि 1 काया कष्ट करुवां घणु, राज रिधि सहूइ तम्ह तणु । माहारि नहीं संसारि काज, तिरिय कारणि मि छोड्युराज । 1. प्रजा सहू सुख भोगत्रि सा• दुखीय न दीसइ कोछ ।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy