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प्राचार्या सोमकीति एवं प्रा यशोधर
प्रसत्रता के स्थान पर हाहाकार मच गया। सबसे अधिक वेदना एवं दुःख राती को हुप्रा । वह रोने पीटने लगी और अपने मन के भाव निम्न प्रकार प्रकट करने लगी
माहिदेनी झूरि घण', होयडा आगिल बाल । रे रे कुथर सलख्यणा, किम नीगम सु काल ॥ २६ ॥ अंतेतुरक धंघलु', जभी मेल्ही प्रावि ।
ए कह पीडा कारणि, हषि हया निर नाथ |1 २७ ।। रानी को अपने पत्र के लिये पति विरह के दुःख को मुलाना पड़ा। वह पुत्र पालन एवं उसकी शिक्षा दीक्षा में लग गयी और पाठ वर्ष की प्रायु में ही उसे सब कलाओं में दक्ष बना दिया। उसका रूप निखर गया तथा उनके मनोज्ञ व्यक्तित्व को देख कर सभी ने उसे अपना राजा स्वीकार कर लिया ।
वरस पाठनु थउ जे जस्लि, सर्व क्रता सीस्यु ते तलि 1 सोवानी परि झलकि देह, सेवक सजन साहू नव नेह ।। ३२ ।।
सुकौसल बालक राजा थे इसलिये राज्य में दुश्मनों ने तोड़-फोड़ भारम्भ कर दी। प्रजा में खलबली मचने लगी। कौन अपनी जान जोखिम में डाल कर शत्रुओं का मुकाबला करे । लेकिन जब सुकौशल को उपद्रव की बात मालूम हुई तो उसने शत्रुषों को अच्छा सबक सिम्नाने का निश्चम किया । माता ने उसे बालक जान कर रोकना चाहा लेकिन मुकोसल ने माता से निम्न शब्दों में अपना दृढ़ निश्चय व्यक्त किया-..
कु'यर कहि तु सलि मात, पिमुण तणी छि थोड़ी बात ।
भाजि नयर देश लूटीइ, शूशी पिठा किम छुटी६ ।। ३६ ।। सुकोसल ने युद्ध की पूरी तैयारी की। सेना को सब शास्त्रों में सज्जित किया गया। हाथी, घोड़ा, पदाति, रथ आदि की सेना तैयार की। इसके पूर्व सब राजाओं को सन्देश भेजे गये जिनमें उन्हें मुकोसल की अधीनता स्वीकार करने के लिये कहा गया । लड़ाई के बाजे बजने लगे । मुकोसल स्वयं रथ में बैठे तथा पैदल सेना को सबसे आगे रखा गया। समुद्र के समान उसकी सेना दिखाई देने लगी । इतनी धूल उड़ी की सूर्य का दिखना बन्द हो गया।
घड्यां कटक जिस सायर पूर, खेहा रवि नवि सूझि सूर ।