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कविवर सांगु
राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में कविवर सांगु की एक मात्र काव्य कृति "सुकोसलराय चुप" नंगचा के शास्त्र भण्डार के एक गुटके में संग्रहीत हैं । इसी गुटके में प्राचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर की रचनाएं लिपिवद्ध हैं 1 गुटका प्राचीन है जिसका लिपिकाल संवत् १५६४ ज्येष्ठ सुदी १२ रविवार है । इस गुटके ने गुजरात एवं राजस्थान के कितने ही शस्त्र अप्ठारो की यात्रा की थी । संवत् १६४४ द्वितीय वेशाख सुदी १५ के दिन राजस्थान के प्रसिद्ध दुगं रणथम्भौर में इस गुटके पर टोका (सूची) लिखी गयी थी। इसके पश्चात् उसने कहां-कहां की यात्रा की थी इसका उल्लेख नहीं मिलता लेकिन वह रम्यम्भोर सेवा के शास्त्र भण्डार में पहुंचा और फिर जयपुर पहुंचा ।
सांगु का दूसरा नाम सांसु भी मिलता है । कवि कहां के थे किस भट्टारक के शिष्य थे। माता पिता स्त्री सन्तान श्रादि के बारे में भी कवि की कृति मौन ही है। लेकिन जिस गुटके में इनकी कृति संग्रहीत है उसकी अन्य कृतियों के आधार पर यह अवश्य कहा जा सकता है कि कवि राजस्थान के ही निवासी थे और श्राचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म मशोधर से इनका निकट का सम्बन्ध था । यद्यपि चुपई में कवि ने अपने नाम के उल्लेख के अतिरिक्त किसी दूसरे विद्वान् का नाम नहीं दिया है। लेकिन उन कवियों के साथ इनकी रचना का संग्रह होना ही इनके पारस्परिक सम्बन्ध को प्रकट करने वाला है ।
रचना काल
यद्यपि इस दृष्टि से भी "सुकोसलराय चुपई" में कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन लिपिकाल के आधार पर इस कृति को हम संवत् १४४० के आसपास की रचना मान कर चलते हैं । इस कृति को एक पाण्डुलिपि देहली के एक शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है जिसका उल्लेख श्री कुन्दनलालजी ने किया है 11
काव्य परम्परा
सुकोसल का जीवन जैन जगत में पर्याप्त रूप से लोकप्रिय रहा है इस कथा का मूल स्रोत हरिषेण कृत "बृहत् कथाकोश २ के १२७ वें एवं १५२ वें
1. देखिये
2. वृहत्कथाकोष (सिंत्री जैन सीरिज बम्बई संस्करण १६४३) 3. बही पृष्ठ ३०५-३१४,