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________________ प्राचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म यशोधर प्राध्यान में मिलना है लेकिन अपन शके महाकवि रइधू' ने सर्वप्रथम संवत् १४६६ में सुकौसल के जीवन को 'सुक्कोसल चरि" के नाम से खण्ड काव्य के रूप में प्रस्तुत करके उसकी लोकप्रियता में चार चांद लगाये। इस खण्ड काम में चार संधियां हैं जिनमें ५४ कडवक है। रइधु ने महागजा नाभिराम से कथानक का सम्बन्ध जोड़कर प्रपने चरित नायक को भी इण्यावशीय प्रादि तीर्थङ्कर ऋषभदेय वा वंशधर सिद्ध किया है। इसलिये लण्ड काव्य की प्रथम दो संघियों में ऋषभदेव का ही जीवन वृत्त दिया गया है। काश्य की शेष दो संधियों में सुकोसत मानीत काम कर ली में प्र; ना मन है ! इधू के समकालीन ब्रह्म जिनदास हुने जिन्होंने अनेक रास काव्यों की रचना करने का यश प्राप्त किया । ब्रह्म जिनदास के इस काव्य के एक पाण्युलिपि डूगरपुर के शास्त्र भण्डार में मुझे देखने का प्रबसर मिल चुका है। ब्रह्म जिनदास के पश्चात् सांगु कवि ने सुकोसल जीवन कथा को अाकर्षक नंग से प्रस्तुत किया। उसे काव्य रूप प्रदान किया तथा सुकोसल को युद्ध भूमि में भेज कर तथा सभी देशों के राजामों पर विजयश्री दिलवा कर उसने जीवन को एक नया मोड़ दिया। उसने रइघु के समान प्रपने काव्य को महाराजा नाभिराम से प्रारम्भ कर दिया किन्तु मंगलाचरण के पश्चान् ही अयोध्या का वर्णन प्रारम्भ कर दिया तथा उसके राजा कीतिघर एवं रानी महिदेवी को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करके कथा को लम्बी नहीं की तथा साथ ही पाठकों को प्रारम्भ से ही सुकोसल ने जीवन कथा को सुनने की रुचि पैदा करने में सफलता प्राप्त की। यही नहीं काव्य के अन्त तक पाठकों की रुचि बनाये रखने में भी वह किसी अन्य कवि से पीछे नहीं रहना चाहता। सुकोसल का जन्म, शिक्षा-दीक्षा, युद्ध एवं विजय का विस्तृत वर्णन, विभिन्न विजित देशों के नामों का उल्लेख, विजय प्राप्ति के पश्चात् नगर प्रवेषा, प्रजाजनों द्वारा स्वागत, राज्य सुख, अकस्मात् बैराग्य होना, घोर तपश्चर्या, व्यानिनी द्वारा शीर भक्षण, कैवल्य एवं निर्वाण मादि घटनायें एक के बाद दूसरी जिस क्रम में प्राती है उससे पूरा काव्य ही रुचिकर बन गया है। काम्प का अध्ययन कवि ने अपने इस चुपई काव्य में सभी वर्णनों को सजीव बनाने का प्रयास किया है । सर्वप्रथम वह अयोध्या नगरी' की महिमा एवं उसके निवासियों की रूमृद्धि का वर्णन करता है। वहां ऊंचे-ऊंचे महल हैं जो ऊंचाई में विन्ध्याचल के काल । विस्तृत परिचय के लिये डा. राजराम जैन का "घु साहित्य का पालोचनात्मक परिशीलन" देखिये ।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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