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________________ हेमचन्द्र की व्याकरण रचनाएँ ब्याकरण के क्षेत्र में हेमचन्द्र ने पाणिनि, भट्टोजी दीक्षित और भट्टि का कार्य अकेले ही किया है । इन्होंने सूत्रवृत्ति के साथ प्रक्रिया और उदाहरण भी लिखे हैं । संस्कृत शब्दानुशासन ७ अध्याय में और प्राकृत शब्दानुशासन एक अध्याय में इस प्रकार कुल आठ अध्याय में अष्टाध्यायी शब्दानुशासन को समाप्त किया है। उन्होंने संस्कृत शब्दानुशासन के उदाहरण संस्कृत द्वयाश्रय काव्य में और प्राकृत शब्दानुशासन के उदाहरण प्राकृत द्वयाश्रय काव्य में लिखे हैं । आचार्य हेमचन्द्र संस्कृत के अन्तिम महावैयाकरण थे जिन्होंने शब्दानुशासन द्वारा संस्कृत भाषा का विश्लेषण पूर्ण रूप से किया और 'हेम सम्प्रदाय' की नींव डाली । पाणिनिकृत 'अष्टाध्यायी' के अनुरूप उन्होंने भी अपने व्याकरण को ८ अध्यायों व प्रत्येक अध्याय को ४ पादों में विभाजित किया । उनकी विशेषता यह है कि संस्कृत सम्पूर्ण व्याकरण ७ अध्यायों में समाप्त करके अष्टम् अध्याय में प्राकृत व्याकरण का भी प्ररूपण ऐसी सर्वांगपरिपूर्ण रीति से किया कि वह अद्यावधि अपूर्व कहा जा सकता है। उनके पश्चात् जो प्राकृत ब्याकरण बने, वे बहुधा उनका ही अनुकरण करते हैं । विशेषतः शौरसेनी, मागधी, पैशाची प्राकृतों के स्वरूप कुछ न कुछ उनके पूर्ववर्ती चण्ड व वरुरुचि जैसे प्राकृत वैयाकरणों ने भी उपस्थित किये हैं, किन्तु अपभ्रंश का व्याकरण तो हेमचन्द्र की अपूर्व देन है । उसमें भी जो उदाहरण पूरे व अधूरे पद्यों के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं, उनसे तो अपभ्रंश साहित्य की प्राचीन समृद्धि के सम्बन्ध में विद्वानों की आँखें खुल गयीं और वे उन पद्यों के स्तोत्र की खोज में लग गये । सिद्ध हेम शब्दानुशासन में प्रारम्भिक ७ अध्यायों में ३५६६ सूत्र हैं, ८ वें अध्याय में १११९ सूत्र हैं । इस प्रकार संस्कृत प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के इस महान् व्याकरण को करीब ४ हजार सूत्रों में पूरा करके भी कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र शान्त नहीं रहे । उन्होंने १८००० श्लोक प्रमाण उसकी बृहद्वृत्ति भी लिखी । इस बृहद्वृत्ति पर भाष्य 'कतिचिद् दुर्गपदख्या व्याख्या लिखी गयी । इस भाष्य की हस्त लिखित प्रति बर्लिन में है ( ब्येवर पृ० २३७) । लध्वी वृत्ति का प्रमाण ६००० श्लोक हैं । इस वृत्ति का नाम ' प्रकाशिका' भी है । ( पिटरसन का प्रथम प्रतिवेदन पृ० ७०-७१ ) ६०,००० श्लोकों का एक बृहन्नास नाम का विवरण भी उन्होंने लिखा । यह कृति अब अनुपलब्ध है । उन्होंने अपनी वृत्ति में गणपाठ, धातुपाठ, उणादि और लिङगानुशासन प्रकरण भी जोड़े। इन वृत्तियों में अनेक प्राचीन व्याकरणों के नाम लेकर उनके मतों का विवेचन भी किया है। उदाहरणों में भी बहुत कुछ मौलिकता पायी जाती ८७
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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