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________________ ८६ - आचार्य हेमचन्द्र है। मेरुतुङगाचार्य के प्रबन्ध चिन्तामणि के अनुसार एक बार सिद्धराज जयसिंह की राजसभा में ईर्ष्यालु ब्राह्मगों ने कहा "हमारे शास्त्रों के पाणिन्यादि व्याकरण ग्रन्थों के अध्ययन के बल पर ही इन जैनों की विद्वत्ता है।" राजा ने भी यही पूछा। तब आचार्य हेमचन्द्र ने कहा 'जैनेन्द्र व्याकरण को हम पढ़ते हैं, महावीर ने इन्द्र के सामने जिसकी व्याख्या की थी' इस पर एक ब्राह्मण पिशुन ने कहा 'पुरानी बातों को छोड़ दो, हमारे समय के ही किसी व्याकरणकर्ता का नाम बताओ'। इस पर आचार्य हेमचन्द्र बोले 'महाराज सहायता दें तो मैं ही स्वयं कुछ दिनों में पञ्चाङग परिपूर्ण नूतन व्याकरण तैयार कर सकता हूँ' । राजा ने अपनी अनुमति प्रदान की। इस पर बहुत से देशों के पण्डितों के साथ सभी व्याकरणों को मँगवाकर, हेमचन्द्राचार्य ने 'सिद्ध हेम' नामक नूतन पञ्चाङ्ग न्याकरण एक वर्ष में तैयार किया। इसमें सवा लाख श्लोक थे । इस व्याकरण ग्रन्थ का चल समारोह हाथी पर निकाला गया। इस पर श्वेतछत्र सुशोभित था एवम् दो चामर डोल रहे थे । राजा ने भी इस व्याकरण का खूब प्रचार करवाया । शब्दानुशासन के प्रचार के लिये ३०० लेखकों से ३०० प्रतियाँ लिखवाकर भिन्न-भिन्न धर्माध्यक्षों को भेंट देने के अतिरिक्त देश-विदेश, ईरान, सीलोन, नेपाल, प्रतियाँ भेजी गई गयीं । २० प्रतियाँ काश्मीर के सरस्वती भाण्डार में पहुँची । शब्दानुशासन के अध्यापनार्थ पाटन में कक्कल कायस्थ वैयाकरण नियुक्त किये गये । प्रतिमास ज्ञान शुक्ल पंचमी (कार्तिक सुदी पंचमी) को परीक्षा ली जाती थी और उत्तीर्ण होने वाले छात्र को शाल, सोने के गहने, छाते, पालकी आदि भेंट में दिये जाते थे। शुद्धाशुद्ध की परीक्षा कर यह ग्रन्थ राजकीय कोश में स्थापित किया गया । पुरातन प्रबन्ध संग्रह में भी प्रबन्ध चिन्तामणि का वृत्तान्त रूपान्तरित मिलता है । शब्दानुशासन कितना लोकप्रिय हुआ था इस विषय में पुरातन प्रबन्ध संग्रह में निम्नांकित श्लोक मिलता है। "भ्रातः पाणिनि ! संवृणु प्रलपितं कातंत्र कंथा वृथा । मा कार्षीः कटुशाकटायनवचः क्षुद्रेण चान्द्र ण किम् ।। कः कण्ठाभरणादिमि बर्छरयत्यात्मान मन्यैरपि । श्रूयन्ते यदि तावदर्श मधुरा: श्री सिद्ध हेमोक्तयः ।। १-प्रबन्ध चिन्तामणि-पृष्ठ ४६० । २ शब्दानुशासनजातमस्ति तस्माच्च कथामिदं प्रशस्य तममिति ? उच्यते तद्धि अति विस्तीर्ण प्रकीर्णञ्च । कातंत्र तर्हि साधु भविष्य तीति चेन्न तस्य संकीर्णत्वात् । इदं तु सिद्धहेमचन्द्राभिधानं नास्ति विस्तीर्ण नच संकीर्णमिति अनेनैव शब्द व्युत्पत्तिर्भवति ।....अमरचन्द्रसूरि-बृहत् अवचूर्णी
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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