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हेमचन्द्र की व्याकरण रचनाएँ
व्यक्ति का ही कार्य है । उदाहरणार्थ - शाकटायन के "नित्यं हस्ते पाणी " स्वीकृतौ । १-१- ६ सूत्र के स्थान पर हेमचन्द्र ने "नित्यं हस्ते पाणाबुद्र हे ३-१-१५ सूत्र लिखकर स्पष्टता के प्रदर्शन के साथ उद्वाह - विवाह अर्थ में हस्ते और पाणी af ही अवयव माना है और कृग्धातु के योग में गति संज्ञक कहकर हस्ते कृत्य पाणौकृत्य रूप सिद्ध किये हैं । इस प्रकार शाकटायन के सूत्र में थो साड़ परिवर्तन कर उन्होंने शब्दानुशासन के क्षेत्र में चमत्कार उत्पन्न कर दिया है । इसी प्रकार 'कणे मनस्तृप्तौ, ३-१-६, सूत्र लिखकर 'कणे हत्यपयः पिबति, मनो हत्य पयः पिबति' इत्यादि उदाहरणों के अर्थ में मौलिकता प्रदर्शित की है ।
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इस प्रकार हेमचन्द्र के पूर्व संस्कृत व्याकरण यद्यपि पर्याप्त विकसित रूप में विद्यमान था तो भी उन्होंने अपने पूर्ववर्ती आचार्यों के ग्रन्थों का सम्यक् अध्ययन कर एक सर्वाङ्ग परिपूर्ण उपयोगी एवं सरल व्याकरण की रचना कर संस्कृत और प्राकृत दोनों ही भाषाओं को पूर्णतया अनुशासित किया है । आचार्य हेमचन्द्र का व्याकरण गुजरात का व्याकरण कहलाता है । मालवराज अवन्तिनाथ भोज ने भी व्याकरण ग्रन्थ लिखा था और वहाँ उन्हीं का व्याकरण प्रयोग में लाया जाता था । विद्याभूमि गुजरात में कलाप के साथ भोज - व्याकरण की भी प्रतिष्ठा थी । अतएव हेमचन्द्र ने सिद्धराज जयसिंह के आग्रह से गुर्जर देशवासियों के अध्ययन हेतु अपने व्याकरण ग्रन्थों की रचना की । अमरचन्द्रसूरि ने अपनी 'बृहत् अवचूर्णी' में उनके शब्दानुशासन की चर्चा की है । अतएव स्पष्ट है कि सिद्ध हेमशब्दानुशासन सन्तुलित और पंचाङ्गपरिपूर्ण है । इसमें प्रत्येक सूत्र के पदच्छेद, विभक्ति, समास, अर्थ, उदाहरण, और सिद्धि, ये छहों अङग पाये जाते हैं । आचार्य हेमचन्द्र के व्याकरण से 'हेम' सम्प्रदाय की नींव पड़ी । हेम व्याकरण का क्रम प्राचीन शब्दानुशासनों के सदृश नहीं है । यह व्याकरण पाणिनीय तन्त्र की अपेक्षा लघु स्पष्ट और कातन्त्र की अपेक्षा सम्पूर्ण है | व्याकरण की साधारण जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी उनके शब्दानुशासन को हृदयङ्गम कर सकता है, तथा संस्कृत भाषा के समस्त प्रमुख शब्दों के अनुशासन से अवगत हो सकता है । " शब्दानुशासन" में विषय को स्पष्ट करने की दृष्टि से सूत्र सुव्यवस्थित एवं सुसम्बद्ध हैं। सूत्रों का प्रणयन आवश्यकतानुरूप किया है । एक भी सूत्र ऐसा नहीं है जिसका कार्य किसी दूसरे सूत्र से चलाया जा सकता हो ।
१. शब्दानुशासन - शब्दानुशासन के विषय में कतिपय किंवदन्तियाँ प्रसिद्ध हैं जिनसे शब्दानुशासन की तत्कालिन प्रसिद्धि एवं मान्यता सिद्ध होती