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आचार्य हेमचन्द्र
१. कातन्त्रकार, २. चन्द्रगोमी, ३. क्षपणक, ४. देवनन्दी, ५. वामन, ६. पाल्यकीर्ति, ७. शिवस्वामी, ८. भोजदेव, ६. बुद्धिसागर, १० भद्रेश्वर ११. हेमचन्द्र, १२. क्रमदीश्वर, १३. सारस्वत व्याकरणकार, १४. बोपदेव तथा १५. पद्मनाभ ।
पाणिनीय परम्परा द्वारा संस्कृत भाषा का परिष्कृत रूप अवश्य स्थिर हो गया, किन्तु व्याकरण शास्त्र की अन्यान्य पद्धतियाँ भी साथ-साथ चलती रहीं जैन सम्प्रदाय में देवनन्दी, शाकटायन, हेमचन्द्र आदि कई वैयाकरण हुए हैं । देवनन्दी ने अपने शब्दानुशासन में पूर्ववर्ती छः जैनाचायों का उल्लेख किया है। उनके ग्रन्थ व्याकरण सम्बन्धी थे किन्तु ये ग्रन्थ अब उपलब्ध नहीं हैं । पाणिनि के परवर्ती वैयाकरणों में हेमचन्द्रसूरि तक जो वैयाकरण हुए हैं उनमें देवनन्दी (ई० ५००-५५०) का 'जैनेन्द्र व्याकरण', कातन्त्र, पाल्यकीर्ति (८७१-६२४) का 'शाकटायन व्याकरण' एवं भोजदेव (सं. १०७५-१११०) का 'सरस्वती कंठाभरण' विशेष महत्वपूर्ण हैं । कातन्त्र व्याकरण का हेमचन्द्र पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा है । 'शाकटायन व्याकरण' भी हेमचन्द्र से पूर्व बहुत प्रसिद्ध था । . हेमचन्द्र पर जैनेन्द्र तथा शाकटायन दानों का प्रभाव पड़ा है। भोजदेव का 'सरस्वती कंठाभरण' मालवे के व्याकरण के नाम से प्रसिद्ध है। इन्हें संस्कृत भाषा का पुनरुद्धारक कहते हैं । इनके व्याकरण की लोकप्रियता को देखकर ही स्पर्धावश सिद्धराज जयसिंह ने हेमचंद्र को व्याकरण बनाने की प्रेरणा दी।
आचार्य हेमचन्द्र ने अपने समय में उपलब्ध समस्त व्याकरण वाङमय का अनुशीलन कर अपने 'शब्दानुशासन' एवं अन्य व्याकरण ग्रन्थों की रचना की। हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती व्याकरणों में तीन दोष-विस्तार, कटिनता एवं क्रमभंग या अनुवृत्तिबाहुल्य, पाये जाते हैं; किन्तु शब्दानुशासनकार हेमचन्द्र उक्त तीनों दोषों से मुक्त हैं। उनका व्याकरण सुस्पष्ट एवं आशुबोधक रूप में संस्कृत भाषा के सर्वाधिक शब्दों का अनुशासन उपस्थित करता है। यद्यपि उन्होंने पूर्ववर्ती व्याकरणों से कुछ न कुछ ग्रहण किया है, किन्तु उस स्वीकृति में भी मौलिकता और नवीनता है। उन्होंने सूत्र और उदाहरणों को ग्रहण कर लेने पर भी उनके निबन्धन क्रम के वैशिष्ट्य में एक नया ही चमत्कार उत्पन्न किया है। सूत्रों की समता, सूत्रों के भावों को पचाकर नये ढंग के सूत्र एवं अमोघवृत्ति के वाक्यों को ज्यों के त्यों रूप में अथवा कुछ परिवर्तन के साथ निबद्ध - कर भी अपनी मौलिकता का अक्षुण्ण बनाये रखना हेमचन्द्र जैसे प्रतिभाशाली १-व्याकरण दर्शनर इतिहास द्वारा-पण्डित गुरुपद हालदार पृष्ठ ४४८ ।