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________________ अध्याय:३ व्याकरण ग्रन्थ हेमचन्द्र की व्याकरण रचनाएँ संस्कृत व्याकरण का सर्वोत्कृष्ट रूप पाणिनिकृत "अष्टाध्यायी" में पाया जाता है। उन्होंने अपने से पूर्व के अनेक वैयाकरणों, जैसे-शाकटायन, शौनक, स्फोटायन, आपिशलि, आदि का उल्लेख किया है। जिससे व्याकरण-शास्त्र की अतिप्राचीन अविच्छिन्न विकास धारा का सकेत मिलता है। भगवान पाणिनि की रचना इतनी सर्वाङ्गपूर्ण व अपने से पूर्व की समस्त मान्यताओं का यथावश्यक यथाविधि समावेश करने वाली सिद्ध हुई कि उससे पूर्व की उन समस्त रचनाओं का प्रचार-प्रसार रुक गया और वे लुप्त हो गयीं । पाणिनीय-तन्त्र इतना लोकप्रिय हुआ कि उससे भिन्न प्राचीन तन्त्र व्यवहार के परे हो जाने के कारण लुप्त-प्रायः हो गये । पाणिनी ने अपने पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों के अनेक सूत्र अपने ग्रन्थ में संग्रहित किये हैं। पाणिनी के ग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' में यदि कुछ न्यूनता शेष रह गयी थी तो उसका शोधन वार्तिककार कात्यायन और भाष्यकार पत ञ्जलि ने कर दिया। इस प्रकार पाणिनीय-व्याकरण-सम्प्रदाय को जो प्रतिष्ठा प्राप्त हुई उसे शताब्दियों की परम्परा भी कोई क्षति नहीं पहुँचा सकी। पाणिनि के पश्चात् अनेक वैयाकरणों ने व्याकरण-शास्त्र की रचना की। उत्तरकालीन वैयाकरणों में से अधिकांश का आधार प्रायः पाणिनीय 'अष्टाध्यायी है। केवल कातन्त्र व्याकरण के सम्बन्ध में विद्वज्जनों की यह मान्यता है कि इसका आधार कोई अन्य प्राचीन व्याकरण है। इसी कारण कातन्त्र को भी प्राचीन माना जाता है। पाणिनीतर वैयाकरणों में निम्न ग्रन्थकार प्रसिद्ध हैं
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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