________________
८८
-- आचार्य हेमचन्द्र
है । विधि-विधानों में कर्ता ने इसमें अपने काल तक के भाषात्मक विकास का समावेश करने का प्रयत्न किया है जो ऐतिहासिक दृष्टि से भी बड़ा महत्वपूर्ण
___शब्दानुशासन में निम्नांकित प्राचीन आचार्यों का उल्लेख मिलता है - १, आपिशलि, २. यास्क, ३. शाकटायन, ४. गार्ग्य, ५ वेदमित्र, ६. शाकल्य ७. इन्द्र, ८. चन्द्र, ६. शेष भटारक, १०. पतञ्जलि, ११. वार्तिककार, १२. पाणिनी, १३. देवनन्दी, १४. जयादित्य, १५. वामन, १६. विश्वान्तविद्याधरकार, १७. विश्रान्तन्यासकार, १८. जैन शाकटायन, १६. दुर्गसिंह, २०. श्रुतपाल २१. भर्तृहरि, २२. क्षीरस्वामी, २३. भोज, २४. नारायण कण्ठी, २५.सारसङग्रहकार, २६. द्रमिल, २७. शिक्षाकार, २८. उत्पल, २६. उपाध्याय, ३०. क्षीरस्वामी, ३१. जयन्तीकार, ३२. न्यासकार तथा ३३. पारायणकार ।
हेमचन्द्र का व्याकरण-क्रम प्राचीन शब्दानुशासनों के सदृश नहीं है । इसकी रचना कातन्त्र के समान प्रकरणानुसारी है। इसमें यथाक्रम संज्ञा, स्वर-संधि, व्यन्जन-संधि, नाम, कारक, षत्व, णत्व, स्त्रीप्रत्यय समास आख्यात, कृदन्त और तद्धित प्रकरण हैं। संस्कृत भाषा के शब्दानुशासन को ४ भागों में विभक्त किया जा सकता है-(१) चतुष्कवृत्ति (२) आख्यात वृत्ति (३) कृदवृति और (४) तद्धितवृत्ति ।
चतुष्कबृत्ति में सन्धि, शब्दरूप, कारक एवं समास चारों का अनुशासन आरम्भ से लेकर तृतीय अध्याय के द्वितीय पाद तक वणित है। आख्यात वृत्ति में धातुरूपों और प्रक्रियाओं का अनुशासन तृतीय अध्याय के तृतीय पाद से चतुर्थ अध्याय के चतुर्थ पाद पर्यन्त और कृवृत्ति में कृत् प्रत्यय सम्बन्धी अनुशासन पञ्चम् अध्याय में निरूपित है । तद्धित वृत्ति में तद्धित प्रत्यय, समासान्त प्रत्यय, एवम् न्याय सूत्रों का कथन छठे और सातवें दोनों अध्यायों में वर्णित है । साहित्य और व्यवहार की भाषा में प्रयुक्त सभी प्रकार के शब्दों का अनुशासन इस व्याकरण में ग्रथित है । वास्तविकता यह है कि शब्दानुशासक हेमचन्द्राचार्य का व्यक्तित्व अद्भुत है । इन्होंने धातु और प्रातिपदिक, प्रकृति और प्रत्यय समास और वाक्य, कृत् और तद्धित, अव्यय और उपसर्ग प्रभृति का निरूपण, विवेचन एवम् विश्लेषण किया है।
प्रथम अध्याय के प्रथम पाद में 'अर्हम्, १।१।१ यह मंगल सूत्र कहने के उपरान्त 'सिद्धिःस्याद्वादात्' १।१।२ महत्वपूर्ण सूत्र बतलाकर समस्त शब्दों की सिद्धि, निष्पत्ति और ज्ञप्ति भनेकान्त वाद द्वारा स्वीकार की है। तत्पश्चात्