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हेमचन्द्र की व्याकरण रचनाएँ
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'लोकात्' १।१।३, सूत्र कहकर 'शास्त्र में अनिर्दिष्ट संज्ञा लोकाचार से जाननी चाहिये, कहकर व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है । द्वितीय पाद में संज्ञा प्रकरण के अनन्तर लाघवानुसार वर्ण कार्यों का विवेचन किया है । १।२।३ सूत्र द्वारा र, लु को भी स्वर माना गया है । इसमें इनकी सरलता एक बड़ी उपलब्धि है। तृतीय पाद में व्यञ्जन सन्धि का निरूपण किया गया है । वे विसर्ग सन्धि का अन्तर्भाव व्यञ्जन सन्धि में ही करते हैं । 'अतोऽति रो रू:' १।३।२० तथा 'घोषवति' १।३।२१ सूत्रों से स्पष्ट है कि इन्होंने विसर्ग को व्यञ्जन के अन्तर्गत ही माना है । इस पाद में 'शिटयाद्यस्य द्वितीयो वा' १।३।५६ द्वारा ख्षीरम्क्षीरम् तथा अफसरा (अप्सरा) जैसे शब्दों की सिद्धि प्रदर्शित की है। हिन्दी का खीर शब्द हेमचन्द्र के ख्षीरम् के बहुत निकट है। सम्भवतः उनके समय इस शब्द का प्रयोग होने लगा था। उन्होंने विसर्ग को प्रधान न मानकर 'र' को ही प्रधान माना है, तथा स् और र् इन दोनों व्यञ्जनों के द्वारा विसर्ग का निर्वाह किया है । यह युक्ति संगत और वैज्ञानिक है । साथ ही विस्तार को संक्षिप्त करने की प्रक्रिया में नई दिशा की और सङकेत है। चतुर्थ पाद में साद्यन्त प्रकरण आरम्भ होता है एक शब्द के सभी विभक्तियों के समस्त रूपों की पूर्णतया सिद्धि न बतलाकर सामान्य विशेष भाव से सूत्रों का निबन्धन किया गया है चतुर्थपाद में शब्द रूपों की विवेचना की गयी है।
द्वितीय अध्याय में प्रथम पाद का आरम्भ स्त्रीलिङ्ग से होता है। इस पाद में व्यञ्जनान्त शब्दों का अनुशासन लिखा गया है । और इसमें सहायक तद्धित, कृदन्त और तिङन्त के कुछ सूत्र भी आ गये हैं। द्वितीय पाद में कारक प्रकरण है । कारक की परिभाषा देकर पाणिनि के समान हेमचन्द्र ने कारक का अधिकार नहीं माना है । पाणिनि की दृष्टि से बहुवत् भाव कारकीय नहीं है पर हेमचन्द्र ने कारकीय मानकर अपनी वैज्ञानिकता का परिचय दिया है। तृतीय पाद में लत्व, षत्व, णत्व विधि का प्रतिपादन किया गया है । पश्चात् समास, कृदन्त तद्धित, तिङ्न्त, उपसर्ग, अव्यय आदि के संयोग और भिन्न स्थितियों में णत्व भाव दिखाया गया है । चतुर्थपाद में स्त्री प्रत्यय प्रकरण है । सभी स्त्री प्रत्ययों का अनुशासन किया गया है।
तृतीय अध्याय के प्रथम पाद का वर्ण्य-विषय समास है। द्वितीय पाद में समास की परिशिष्ट चर्चा है । समास होने के बाद तथा समास निमित्तक अनिवार्य कार्य होने के पश्चात् सामासिक प्रयोगों में कुछ विशेष कार्य होते हैं यथासम् सुब्लुक, ह स्व प्रभृति नियमों का इस प्रकरण में समावेश किया गया है ।