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आचार्य हेमचन्द्र
कथा का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है तथा ग्रन्थ का ऐतिहासिक महत्व कम हो गया है । बिल्हण ने १०८५ई०के लगभग 'विक्रमाङकदेव चरित' नामक ऐतिहासिक काव्य की रचना की। इसमें चालुक्य वंशी राजा विक्रमादित्य का चरित्र वर्णित है, कवि ने अपने चरितनायक का अतिरंजित वर्णन किया है। जगहजगह पौराणिक और अलौकिक प्रसङगों के उल्लेख से काव्य का ऐतिहासिक पक्ष निर्बल पड़ गया है। घटनाओं की तिथियाँ भी सूचित नहीं की गई है। महाकवि कल्हण-कृत राजतरङगिणी' (११४८-५१ ई०) ऐतिहासिक काव्यों में सबसे अधिक महत्वमय है। यदि कहा जाये कि 'राजतरङगिणी' संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं के क्रमबद्ध इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास है तो अत्युक्ति नहीं होगी। कल्हण ने आदि काल से लेकर सन् ११५१ के आरम्भ तक काश्मीर के प्रत्येक राजा के शासनकाल की घटनाओं का यथाक्रम विवरण दिया है । संस्कृत के प्राचीन ऐतिहासिक महाकाव्यों में यही एकमात्र कृति है जिसमें तिथियों का निर्देश किया गया है । कहीं-कहीं कल्हण की कालगणना भ्रान्तिपूर्ण है । फिर भी 'राजतङरगिणी' संस्कृत की अमुल्य कृति है ।
कल्हण के अनन्तर रचे गये ऐतिहासिक काव्यों में आचार्य हेमचन्द्र का 'कुमारपाल चरित' अथवा 'द्वयाश्रय' काव्य ही महत्वपूर्ण है । कहा जाता है कि अण्हिलवाड़ के चालुक्य वंशी राजा कुमारपाल के सम्मानार्थ इस ऐतिहासिक काव्य की रचना की गयी। प्रो. पारीख का यह मत, जो सर्वथा उचित प्रतीत होता है, कि संस्कृत द्वयाश्रय का अधिकांश भाग सिद्धराज जयसिंह के समय में लिखा गया होना चाहिए।
"द्वयाश्रय काव्य" में कुमारपाल के शासन का वर्णन करते हुए काव्य के १६ वें सर्ग से २० वें सर्ग तक जो कुछ कहा गया है उसमें कम से कम इतनी सत्यता है कि कुमारपाल जैन धर्म के सिद्धान्तों का सच्चा अनुयायी था। इसने अत्यन्त कठोर दण्ड का विधान करते हुए पशु-हिंसा का निषेध कर दिया था, और अनेकानेक जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था। वह निश्चित रूप से जैनधर्म के पक्ष-पात की नीति का अनुसरण करता था । कुमारपाल चरित में निम्नांकित ऐतिहासिक तथ्य पूर्णतया सत्य हैं- (१) कुमारपाल का राज्याधिकार, (२) सत्यधर्मज्ञान प्राप्त करने की उसकी मनीषा, (३) हेमचन्द्र का पूर्व कालीन जीवन, (४) हेमचन्द्र और कुमारपाल का सम्बन्ध, (५) कुमारपाल का जैन-महोत्सवों को मनाना, (६) सौराष्ट्र मन्दिरों की कुमारपाल की यात्रा (७) गिरनार पहाड़ पर सोपान बनाना, (८) विहार पौधशाला आदि का