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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
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निःसन्देह आचार्य हेमचन्द्र का पण्डित-कवियों में मूर्धन्य स्थान है । उनके जैसे पण्डित के द्वारा सिद्धराज जयसिंह की पण्डित सभा यथार्थ में पण्डित सभा हो गयी थी। 'सिद्ध हेम शब्दानुशासन', 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित' आदि में उन्होंने को राजा की स्तुति में प्रशस्ति श्लोक लिखे हैं वे दरबारी काव्य के उत्कृष्ट
नमूने हैं।
हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थों का ऐतिहासिक एवम् पौराणिक पक्ष
अन्य साहित्य के समान संस्कृत के ऐतिहासिक काव्य में भी अचार्य हेमचन्द्र का स्थान विशिष्ट है । संस्कृत ऐतिहासिक-काव्य में 'काव्य' को महत्व अधिक दिया जाता है, इतिहास को कम । कहीं-कहीं तो इतिहास के तरफ ध्यान ही नहीं दिया जाता, और कहीं कहीं इतिहास का अतिशयोक्ति में विपर्यात किया जाता है । इस प्रकार का विपर्यास विल्हण के 'विक्रमाङकदेवचरित' में देखा जा सकता है किन्तु आचार्य हेमचन्द्र के 'कुमारपाल चरित' अथवा 'द्वयाश्रय' काव्य में ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा नहीं की गयी है । इस दृष्टि से हेमचन्द्र के काव्य ग्रन्थों का ऐतिहासिक पक्ष अत्यन्त सबल सिद्ध होता है।
प्राचीन काल के पुराणों में तत्कालीन धार्मिक सामाजिक एवम् सांस्कृतिक जीवन का विशद् चित्र उपलब्ध होता है । बौद्धों और जैनों के ग्रन्थों में भी ऐतिहासिक व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है। प्राचीन राजाओं की प्रशस्तियों में ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध होते हैं। फिर भी इन्हें ऐतिहासिक काव्य नहीं कह सकते। अश्वघोष (१ ई०) का 'बुद्धचरित' ऐतिहासिक काव्य कहा जा सकता है किन्तु वह अधिकांशतः काव्य है। धर्मोपदेश उसका उद्देश्य है। अत: ऐतिहासिक दृष्टि से उसका महत्व नहीं है । सर्वप्रथम ऐतिहासिक गद्य-काव्य की रचना करने का श्रेय बाण भट्ट (ई०६०६-६४८)को है। उनके 'हर्षचरित' में महाराज हर्षवर्धन का चरित्र अङ्कित हैं। इसमें इतिवृत्तों का उल्लेख कवित्वमय भाषा व में दिया गया है। किसी घटना की तिथि भी नहीं दो गई है। राज्यवर्धन को मारने वाले गोडाधिप का ‘हर्षचरित' में कहीं नाम तक नहीं बतलाया गया है, अतए व काव्य का ऐतिहासिक महत्व कम हो गया है। वाक्पति राज का 'गौडवहो' नामक प्राकृत ऐतिहासिक काव्य है (७३६ ई०) । गौडवहो में ऐतिहासिक बातों का वर्णन बहुत ही कम है। उसमें यशोवर्मा द्वारा एक गौड़ राजा के परास्त करने की घटना का वर्णन है, किन्तु उस गौड़ राजा के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है । ई० १००५ में पदम्गुप्त अथवा परिमल कालिदास का नवसाहसाङक चरित की रचना हुई। इसमें भी विस्तृत वर्णनों से