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आचार्य हेमचन्द्र
इस पण्डित शैली का प्रभाव 'जैन महाकाव्यों' में भी परिलक्षित होता है। हरिचन्द्र नामक कवि ने 'धर्मशर्माभ्युदय' नामक महाकाव्य की रचना की, जो इसी कृत्रिम शैली का प्रतीक है। १२०० ई०के वाग्भट के 'नेमिनिर्वाण' काव्य पर 'धर्मशर्माभ्युदय' का प्रभाव परिलक्षित होता है। 'धर्मशर्माभ्युदय' में चित्रालङकारों की भरमार है। १२०० शताब्दी में ही महाकवि कविराज ने 'राघवपाण्डवीय' नामक महाकाव्य की रचना की। इसमें प्रत्येक श्लोक में श्लेष द्वारा रामायण और महाभारत की कथा का साथ-साथ वर्णन किया गया है । बाद में इस काव्य का भी अनुकरण होने लगा तथा व्याकरण प्रधान शास्त्र काव्य की परम्परा विकसित होने लगी। श्री हरदत्तसूरि के 'राघवनैषधीय' में नल
और राम की ओर चिदम्बरकृत 'राघवयादवपाण्डवीय' में रामायण, महाभारत तथा भागवत् की कथा एक साथ वर्णित है । विद्यामाधव रचित' पार्वती ऋक्मिणीय' में शिव-पार्वती तथा कृष्ण-ऋक्मिणी के विवाह का एक साथ वर्णन किया गया है। बेंकटाध्वरि के 'यादवराघवीय' में सीधे पढ़ने से राम तथा उलटे पढ़ने से कृष्ण की कथा का वर्णन है । पण्डित काव्य का चरमोत्कर्ष श्री हर्ष के 'नैषध' में देखने को मिलता है जिन्होंने अपने काव्य को जानबूझ कर क्लिष्ट बनाया । उन्होंने कहा है, 'पण्डित होने का दर्प करने वाला कोई दुःशील मनुष्य इस काव्य के मर्म को हठपूर्वक जानने का चापल्य न कर सके इसलिये हमने जानबूझकर कहीं-कहीं इस ग्रन्थ में ग्रन्थियाँ लगा दी हैं । जो सज्जन श्रद्धा-भक्ति पूर्वक गुरु को प्रसन्न करके इन गूढ़ ग्रन्थियों को सुलझा लेंगे, वे ही इस काव्य के रस की लहरों में हिलोरे ले सकेंगे।'
__ पण्डित कवियों में आचार्य हेमचन्द्र का महत्वपूर्ण स्थान है, इनका काव्य 'पण्डितकाव्य' होकर 'शास्त्रकाव्य' भी है। इनके काव्य में कुछ ऐसी विशेषता पायी जाती है जो अन्य पण्डित कवियों के काव्य में नहीं पायी जाती है। पहली विशेषता तो यह है कि उसमें धर्म-प्रचार की भावना ओतप्रोत है । चमत्कृत शैली में व्याकरण बताते हुए उन्होंने अपने धर्म का प्रभावपूर्ण प्रचार किया है एवम् कुमारपाल को श्रावक धर्म में आचार-बद्ध किया है। यह बात अन्य पण्डित काव्य में तथा शास्त्र काव्य में नहीं पायी जाती। दूसरी विशेषता उनका काव्य ऐतिहासिक काव्य है। संक्षेप में, आचार्य हेमचन्द्र के काव्य में संस्कृत बृहत्त्रयो के अनुसार पाण्डित्यपूर्ण चमत्कृत शैली है, भट्टि के अनुसार व्याकरण का विवेचन है, अश्वघोष के अनुसार धर्म-प्रचार है एवम् कल्हण के अनुसार इतिहास भी है । इतनी सारी बातें एक साथ अन्य किसी भी काव्य में पायी नहीं जाती। अतः