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हेमचन्द्र के काव्य-ग्रन्थ
ले लिया तथा कल्पना की प्रधानता हो गयी। इन काव्यों पर 'कामशास्त्र तथा अलङ्कार शास्त्र का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ा । अलङकार शास्त्र ने काव्य सम्बन्धी नियमों को निर्धारित किया तथा कामशास्त्र ने नायक-नायिका के आचार-विचार को प्रस्तुत किया। शास्त्रीय सिद्धान्त की प्रधानता ने इन पण्डित कवियों को अपनी स्वतन्त्र उद्भावना-शक्ति के प्रति सतर्क कर दिया। उन्होंने शास्त्रीय मत को श्रेष्ठ, और अन्तः प्रेरणा की गौण मान लिया।
पण्डित कवियों की यह अलङकृत शैली इतनी लोकप्रिय हुई कि 'भारवि' के पश्चात् इस शैली से युक्त काव्य-निर्माण करने को होड़ लग गयी । 'शिशुपाल वघ' के रचयिता 'माघ' ने मानों स्पर्धा की भावना रख कर ही अपने काव्य को 'भारवि' से भी अधिक पाण्डिल्यपूर्ण बनाया। माघ के कान्य में भारवि के 'किरातार्जुनीय' का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है, तो रत्नाकर के 'हर विजय' नामक महाकाव्य पर माघ का प्रभाव स्पष्ट दर्शित होता है। भट्टि के 'भट्टिकाव्य' ने इस परम्परा में एक और अध्याय जोड़ दिया अलङकृत शैली के साथसाथ व्याकरण के जटिल नियमों के उदाहरण प्रस्तुत करना भी इन पण्डित कवियों का लक्ष्य बन गया। इस प्रकार भारवि से आरम्भ होने वाला अलङकृत शैलीयुक्त काव्य 'शास्त्र काव्य' में परिणत हो गया। यह उसी अलङकृत शैली की चरम सीमा है।
Prakrit, the learned Jain Moak, Hemchandra proves himself simultaneously a poet, historian, and grammarian in the two languages. The work contains the history of चालुक्या particullarly of कुमारपाल in cantoes 16-20. This prince is extolled above all as a pious Jaina...............it is evident that ARYTT was full in life and at the peek of his fame when the poem was written.
H. Winternitz-History of India Literature Vol III P. I Page 102 "............Some poems were written for the main purpose of preaching the religion. परिशिष्ठ पर्वन् has a number of popular tales which the author introduced into his bicgraphical narrations about Jain Saints. History of Sanskrit Literature by वरदाचारी Page 84, 91, 101, 122, 126